रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया (RBI) की ओर से पंजाब और महाराष्ट्र को-ऑपरेटिव (PMC) बैंक और के कामकाज पर रोक लगा दी हैं। यह रोक बैंक की वित्तीय अनियमितताओं के कारण लगाया गया है। इस रोक के बाद इस बैंक के ग्राहक छह महीने में अपने अकाउंट से 10 हजार रुपये से ज्यादा नहीं निकाल सकते। PMC के ग्राहक बैंक में जमा अपने पैसे को असुरक्षित समझने लगे हैं।
बैंक चाहे सरकारी हों या प्राइवेट, विदेशी हो या को-ऑपरेटिव, इनमें जमा पैसो पर सिक्यॉरिटी डिपॉजिट इंश्योरेंस एंड क्रेडिट गारंटी कारपोरेशन की तरफ से उपलब्ध कराई जाती है। इसके लिए बैंक प्रीमियम भरते हैं। आपके बैंक अकाउंट में कितनी भी रकम जमा हो, गारंटी सिर्फ 1 लाख रुपये तक ही होगी।
यही नहीं, अगर आपके किसी एक बैंक में एक से अधिक अकाउंट और FD आदि हैं तो भी बैंक के डिफॉल्टर होने या डूब जाने के बाद आपको एक लाख रुपये ही मिलने की गारंटी है। यह रकम किस तरह मिलेगी, यह गाइडलाइंस DICGC तय करता है। वहीं ये 1 लाख रुपये कितने दिनों में मिलेंगे, इसे लेकर कोई समय-सीमा नहीं है। बैन हटने पर स्थिति पहले की तरह सामान्य हो जाती है।
को-ऑपरेटिव बैंक की ओर से अधिक ब्याज मिलने की वजह से लोग अधिक आकर्षित होते हैं। को-ऑपरेटिव बैंक सेविंग्स, एफडी जैसी योजनाओं पर अन्य बैंकों की अपेक्षा ज्यादा ब्याज देते हैं। समझदारी इसमें है कि को-ऑपरेटिव बैंक में जाकर आप पूछ सकते हैं कि आखिर को-ऑपरेटिव बैंक दूसरे बैंकों की अपेक्षा ज्यादा ब्याज क्यों दे रहा है/को-ऑपरेटिव बैंक की वेबसाइट भी चेक करें। कुछ भी शंका वाली बात नजर आए तो वहां से कमाई निकाल लें।
को-ऑपरेटिव बैंक जहां पैसा इन्वेस्ट कर रहा है, उन कंपनियों की भी पड़ताल कर लें कि मार्केट में उनकी क्या स्थिति है। वे लाभ में चल रही हैं या घाटे में। बेहतर होगा कि सरकार बैंकों में अपना पैसा जमा करें। हो सकता है कि सरकारी बैंक से आपको ब्याज दर कुछ कम मिले, लेकिन को-ऑपरेटिव बैंकों के मुकाबले वहां पैसा सुरक्षित रहने के बहुत अधिक चांस होते हैं।
जीवन में थोड़ा-सा रिस्क उठाएं। आपने बैंक एफडी में या किसी दूसरी जगह जो निवेश कर रखा है, उसे SIP के जरिए इक्विटी शेयर मार्केट, म्यूचुअल फंड आदि में लगाएं। हो सकता है कि पैसे कुछ समय के लिए फंस जाएं, लेकिन लॉन्ग टर्म के लिए यह निवेश एफडी या अन्य निवेशों के मुकाबले फायदे का सौदा भी साबित हो सकता है।
अपनी पूरी बचत कभी भी एक ही बैंक या उसकी अलग-अलग ब्रांचों में न रखें। बैंक डूबने की स्थिति में एक बैंक के सभी अकाउंट को एक ही अकाउंट माना जाता है। ऐसे में बेहतर होगा कि सेविंग्स या करंट अकाउंट, एफडी या दूसरी बचत अलग-अलग बैंकों के अकाउंट में रखें।
अगर आपका किसी बैंक में अपने नाम से व्यक्तिगत खाता और किसी दूसरे व्यक्ति के साथ उसी में जॉइंट अकाउंट भी है, तब भी बैंक के डूबने की स्थिति में आपको दो लाख ही मिल जाएंगे। हालांकि, इसके लिए भी जरूरी है कि जॉइंट अकाउंट में पहला नाम दूसरे शख्स का होना चाहिए।
भारत में अभी तक ऐसी स्थिति नहीं आई कि बैंक डूबा हो। अगर किसी बैंक को कोई परेशानी होती है तो उस बैंक को किसी दूसरे बैंक में मर्ज कर दिया जाता है। इस तरह उसे नई जिंदगी मिल जाती है और ग्राहक सुरक्षित रहता है, क्योंकि ऐसे में नया बैंक ग्राहकों के पैसे की जिम्मेदारी ले लेता है।