हैदराबाद रेप-मर्डर केस के आरोपियों के एनकाउंटर के बाद से इसके सही-गलत होने पर बहस छिड़ गई है। पुलिस के ऐक्शन पर मिली-जुली प्रतिक्रियाएं देखने को मिलीं, लेकिन ज्यादातर लोग एनकाउंटर के पक्ष में खड़े नजर आए।
इसके पीछे एक बड़ी वजह न्यायपालिका से भरोसा उठना भी है। दरअसल, पिछले कुछ सालों के रेप से जुड़े आंकडें बताते हैं कि ऐसे मामलों में दोषी साबित होनेवाले लोगों की संख्या बेहद कम है। इतना ही नहीं पिछले 11 सालों में जिन तीन केसों ने देश की राजधानी को झकझोर दिया वे अभी तक कोर्ट में हैं।
2014 से 2017 तक के आंकड़े बताते हैं कि जितने केस रजिस्टर हुए उनमें से अधिकतम 30 प्रतिशत में दोषी सिद्ध हो पाए। दी गई तस्वीर में दिखाया गया है कि साल 2017 में देशभर में रेप के कुल 1 लाख 46 हजार 201 मामलों में ट्रायल चला।
इसमें से सिर्फ 31.8 प्रतिशत में दोषसिद्धि हुई। गैंगरेप से जुड़े मामलों में भी स्थिति ऐसी ही थी। 2017 के गैंगरेप के 90.1 प्रतिशत मामले लंबित ही हैं।
रेप के आरोपियों के एनकाउंटर के बाद एक धड़ा पुलिस की भूमिका पर भी सवाल उठा रहा है। वहीं नैशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो (NCRB) के मुताबिक, पिछले सात सालों में कस्टडी में किसी की मौत के लिए किसी पुलिसवाले को दोषी नहीं ठहराया गया है। बता दें कि साल 2011 से अबतक पुलिस कस्टडी में 713 लोगों की मौत हुई है।
निर्भया केस (2012): 16 दिसंबर को हुए इस गैंगरेप ने पूरे देश को हिला दिया था। पीड़िता की मौत के बाद ऐसे जघन्य अपराधों से निपटने के कानून में बदलाव हुए। इसके बाद ही रेप केसों के लिए फास्ट ट्रैक कोर्ट बने थे।
मामले में कुल छह लोगों को पकड़ा गया था। इसमें एक नाबालिग था। सबपर मर्डर, रेप, अप्राकृतिक अपराध, जान से मारने की कोशिश, किडनैपिंग, डकैती आदि की धाराएं लगी थीं। इनमें से एक राम सिंह ने जेल में सूइसाइड कर लिया था।
2013 में फास्ट ट्रैक कोर्ट ने इन्हें दोषी पाया और फांसी की सजा सुनाई। सजा के खिलाफ दोषी सुप्रीम कोर्ट पहुंच गए, जिसके चलते 2014 में इन्हें फांसी नहीं हुई। फिर मामला अटका रहा। अब 2018 में इनकी रिव्यू याचिका खारिज की गई।
फिलहाल फांसी पर कोई फैसला इसलिए नहीं हुआ क्योंकि एक दोषी (विनय शर्मा) ने दया याचिका दायर की हुई है। फिलहाल इसपर कोई फैसला नहीं हुआ है।
सोम्या विश्वनाथन, (2008): टीवी पत्रकार सोम्या विश्वनाथन को 30 सितंबर 2008 को गोली मार दी गई थी। उस वक्त वह रात को अपने घर लौट रही थीं। मामले में तीन लोगों के खिलाफ केस दर्ज हुआ था।
ये तीन लोग आईटी कर्मचारी जिगिशा घोष के मर्डर के भी दोषी पाए गए। फिलहाल साकेत की जिला कोर्ट में इनका ट्रायल चल रहा है। फिलहाल एक आरोपी रवि कपूर जुलाई में परोल पर बाहर तक आ चुका है।
जिगिशा घोष, 2009: नोएडा में जॉब करनेवाली जिगिशा घोष का 18 मार्च 2009 को मर्डर हो गया था। यह घटना वसंत विहार में घटी थी। उनका शव तीन दिन बाद सूरजकुंड से मिला था।
आरोपी सोने के आभूषण, दो फोन और डेबट-क्रेडिट कार्ड ले गए थे। ट्रायल कोर्ट द्वारा तीन दोषियों में से दो (रवि कपूर, अमित शुक्ला) को मौत की सजा और बलजीत मलिक को उम्रकैद की सजा सुनाई गई थी।
हालांकि, बाद में दिल्ली हाई कोर्ट ने रवि और अमित की सजा को भी उम्रकैद में बदल दिया था। यह जिगिशा के परिवार के लिए झटके जैसा था। अब मामले पर सुप्रीम कोर्ट के फैसला का इंतजार है।