उत्तर प्रदेश का गाजियाबाद विकास प्राधिकरण संगठित अपराध का गढ़ बनता जा रहा हैं व यह सिर्फ ओर सिर्फ बड़े बिल्डरों की कठपुतली बंद चुका हैं व इसे उच्चाधिकारियों का भी संरक्षण प्राप्त हैं व यह बात हम नहीं कह रहे है यह सर्वविदित हैं।
आम जनता पर कठोर कार्यवाही व बिल्डरों को राहत।
आम जनता अपने खून पसीने की कमाई से एक संपत्ति जोड़ती हैं व जब प्लॉट कटते हैं या भूमि बिक रही होती हैं तो उसकी रजिस्टरी के समय सब विभाग कंधे से कंधा मिलाकर काम करते हैं क्योकि प्रत्येक प्लॉट पर सबका तय कमीशन बंधा होगा हैं लेकिन जब व्यक्ति मकान या दुकान बनाने लगता हैं तो प्रशासन इन बड़े बड़े बिल्डरों के इशारे पर इनको तोड़ने आज जाता हैं।
जबकि इनही बड़े बड़े बिल्डरों ने अपने यहा पर जमकर नियमो की धज्जिया उड़ाई हैं व जीडीए ने कोई कार्यवाही ना करते हुए इन्हे नियमित भी किया हैं ओर सब जानते हैं की इस खेल मे बिना लाभ के किसी ने भी अपनी सहमति नहीं दी होगी। एनएच 24 के लगभग सभी बड़े बिल्डरों ने अपने अपने फायदे के लिए ना केवल गैर व्यावसायिक इमारतों का व्यवसायीकरण किया हैं अपितु बिल्डिंगों की उच्चाई भी बढ़ाई हैं पर जीडीए को इसमे कोई खामी नहीं दिखती।
अभी हाल ही मे जीडीए के नए उपाध्यक्ष अतुल वत्स ने कमान संभाली हैं व आते ही इन्दिरा पुरम, शालीमार गार्डेन, लाजपत नगर, गोविंदपुरम जैसे क्षेत्र मे दौरा करके अवैध निर्माणों पर तत्काल ही कई अधिकारियों को निलंबित किया हैं। हमने जब जांच की तो पता लगा की केवल छोटे छोटे बिल्डरों पर ही कार्यवाही की गई है जबकि बड़े बड़े बिल्डर अभी भी जीडीए की पहुच से बाहर हैं।
जीडीए के इस संगठित अपराध मे जीडीए के ही कई पूर्व अधिकारी सम्मिलित है जिनहोने सेवानिवृति के बाद कई बड़े बड़े बिल्डरों के यंहा नौकरी शुरू कर दी हैं व अपनी पहुच, अनुभव व पकड़ के कारण इन बिल्डरों के अवैध व अनुचित निर्माणों को जीडीए से नियमित करवा रहे हैं।
यह मकड़जाल इतना जटिल है की जो शिकायते मुख्यमंत्री कार्यालय, प्रधानमंत्री कार्यालय व अन्य स्त्रोतों से आती हैं तो वो बिल्डरों के साथ मिलकर शिकायतकर्ता के को डरा धमकाकर, प्रलोभन देकर या झूठी कार्यवाही दिखाकर बंद कर दी जाती हैं। इतना ही नहीं जीडीए के अधिकारी बिल्डरों को शिकायतकर्ता की पूरी जानकारी भी दे देते हैं जिससे की कई बार उसकी जान पर बन आती हैं पर इससे उन्हे कोई मतलब नहीं।
एनएच 24 पर स्थित बिल्डर जमकर नियमो व नियमकों के आदेशो की धज्जिया उड़ा रहे हैं पर जीडीए के कुछ अधिकारी इन्हे अपने निजी लोभ के कारण नियमित करवा रहे हैं व सरकार को झूठी जांच रिपोर्ट देकर इन्हे अनुचित लाभ भी दिलवा रहे हैं जो की जांच का विषय हैं।
इसका ज्वलंत उदहारण आपको जीडीए की 162वी बोर्ड बैठक जो की 29 सितंबर 2023 मे हुई थी उसका दे रहे हैं जिसमे साफ साफ लिखा था की GDA द्वारा उप्पल चड्ढा हाई टेक प्राइवेट लिमिटेड को अभी तक दिये गए सभी आंशिक कंप्लीशन प्रमाणपत्र के अनुसार सभी सुविधाओ का निर्माण किया जा चुका हैं की नहीं व इस रिपोर्ट को आगामी बैठक मे नयी डीपीआर पर चर्चा व निस्तारण से पहले इसे पटल पर रखना व संग्लन भी करना चाहिए था जो की आज तक बनी ही नहीं हैं पर विभाग ने अपने पूर्व के आदेशो को देखे बिना ही डीपीआर को पास कर दिया गया। क्या इतनों बड़ी गलती अंजाने मे हो सकती थी?
जीडीए के बैठे धृतराष्ट्रों को यह भी नहीं ज्ञात की उन्होने जो प्रमाण पत्र जारी किए थे वो 5 साल के लिए प्रभावी थे लेकिंन उनकी आज तक इनपर कोई जांच भी नहीं बैठी। उनके अनुसार बिल्डर ने सारे काम कर लिए होंगे इतना ही नहीं उन लोगो ने जनता की शिकायत पर क्षेत्र मे जाकर झाँका तक नहीं की वनहा क्या हो रहा हैं व सारी की सारी शिकायते बिल्डर को अग्रेषित कर दी।
यह सभी तथ्य बताते है की जीडीए एक संगठित अपराध का अड्डा बनता जा रहा है व इसपर तुरंत लगाम लगाने की जरूरत हैं।