हम सभी जानते हैं की मायावती के काल मे उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा हाई-टेक सिटी की कल्पना की गई थी जिसके अंतर्गत कई बिल्डरों को गाज़ियाबाद मे 18 गावों की जमीन विकसित कर सरकार को सौपने की नीति बनाई गई थी जो की कुछ सालो के लिए ही थी लेकिन सरकारी मशीनरी द्वारा नियमो को ताक मे रखकर व प्रशासनिक तंत्र का संगठित रूप से प्रयोग करके आजतक सरकार को सौपी नहीं जा सकी हैं।
वर्ष 2005 मे नीति आने के बाद आज 18 वर्ष बीत चुके हैं लेकिन आजतक फेस एक अभी तक अविकसित हैं ओर कुव्यवस्था का हाल यह हैं की वेव प्रबंधन लोगो को नियमित बिजली के कनैक्शन नहीं दे पा रहा हैं। सैक्टर 1 से लेकर सैक्टर 7 वालो को आजतक कोई भी क्लब नहीं मिल पाया हैं ओर प्रबन्धको के व्यवहार से नहीं लगता हैं वो क्लब देने के प्रति गंभीर हैं।
यही नहीं वर्ष 2005 के प्राप्त मानचित्रो के अनुसार वेव प्रबंधन द्वारा गाज़ियाबाद विकास प्राधिकरण के सहयोग से अधिकतर हरित क्षेत्र पर मकान व व्यावसायिक प्रतिष्ठान बना लिए गए हैं क्योकि उस समय वेव सिटि मे “नकद” प्रवाह चरम पर था व अधिकारियों ने अपने स्वार्थ के लिए नीतियो मे अनैतिक रूप से परिवर्तन किए व जो नक्शे व डीपीआर ऑनलाइन होनी चाहिए थी वो आरटीआई लगाने के बावजूद भी उपलब्ध नहीं कराई जा रही हैं।
Wave City Map Year 2019 Sector 5
बिजली संयोजन मे गोलमाल
वेव प्रबंधन द्वारा एकल बिन्दु संयोजन का पूर्ण रूप से दुरुपयोग किया हैं। बिजली के नियमो का दुरुपयोग करने के लिए वेव द्वारा हर सैक्टर मे कुछ बिल्डर फ्लोर बनाए गए थे ताकि उनकी आड़ मे सभी सेक्टरों की एकल बिन्दु की पहुच हो सके व बाद मे प्लॉट व अन्य बहुमंजिला इमारतों मे भी उसका जमकर फायदा उठाया जा सके। यही नीति वो फेस दो मे भी लागू करना चाहते हैं व इसी एकल बिन्दु संयोजन को वो आगे सेक्टरों मे भी ले जाएँगे क्योकि एकल बिन्दु संयोजन नीति को उत्तर प्रदेश विधुत नियामक आयोग द्वारा 2019 मे ही बंद कर दिया हैं।
यहीं नहीं कूड़ा प्रबंधन, सीवर प्रबंधन (एसटीपी), पीने का पानी, सुचारु बिजली, संचार, बैंक, पोस्ट ऑफिस, आधार सेंटर, अस्पताल, विद्यालय जैसी मूलभूत सुविधाए आज 15 साल बाद मे भी विकसित नहीं हो पायी हैं व प्रबंधन स्वय क्षेत्र विकास ना करके दूसरे निजी बिल्डरों जैसे की गौर, SKA इत्यादि को भूमि बेच रहा हैं ताकि वो सब समेटकर भाग सके।
इतना सब होने के बाद भी प्रशासन आंखे मूँदे बैठा हैं क्योकि वेव ने इतने सालो मे एक संगठित तंत्र विकसित किया हैं जो की वेव सिटि के विकास व हमारे बीच मे बाधक हैं। नियमो के अनुसार विकासकर्ता को बिक्री का कुछ प्रतिशत क्षेत्र के विकास मे लगाना चाहिए। इसी लिए वेव सिटि बिक्री का 60% सफ़ेद स्वय के द्वारा व 40% नकद अपने रजिस्टर एजेंटो के द्वारा लेती हैं ओर यही “नकद” प्रशासन को “आंखे” मूँदने के लिए प्रेरित करता हैं।
सूत्रो से पता चला हैं की वेव द्वारा इकट्ठा किया गया “नकद” अधिकारियों, बिचोलियों के अलावा लंदन मे बैठे वेव ग्रुप के एक सबसे बड़े शख्स के पास हवाला द्वारा भेजा जाता हैं जो की एक जांच का विषय हैं।
उत्तर प्रदेश मे अगभग पूरा तंत्र भ्रष्ट हैं व इस नकद की पहुच लखनऊ से लेकर दिल्ली तक हैं जिसके कारण वेव प्रबंधन की डीपीआर लगातार तीन महीनो तक आयुक्त मेरठ कार्यालय मे “प्रस्तावित” होती रही। वो तो शुक्र हैं क्षेत्र के पुराने नागरिकों, किसानो व निवासियों का जिनके अथक प्रयासो से वेव की “मनमानी” पर रोक लगी हुई हैं।
अब प्रबंधन एक नयी नीति पर काम कर रहा हैं जिसमें हर सेक्टरों मे वो अपने लोगो के साथ मिलकर एक आरडबल्यूए बनाने मे जी जान से जुटा हुआ हैं ताकि आरडबल्यूए के द्वारा सभी आपत्तियो को दरकिनार कर डीपीआर को प्रशासन की मदद से पास कराया जा सके। चूंकि आरडबल्यूए क्षेत्र का प्रतिनिधित्व करती हैं इसलिए प्रशासन अन्य लोगों की आपत्तियों को दरकिनार कर सकता हैं।
आइये एक मिलकर संयुक्त प्रयास करे क्योंकि “भेड़ियो की कोई जात नहीं होती उन्हें तो सिर्फ संगठित होकर नोचने से मतलब हैं।