उत्तराखंड के मुख्यमंत्री त्रिवेन्द्र सिंह रावत देश विदेश के लोगो को उत्तराखंड में उद्योग लगाने के लिए प्रेरित कर रहे हैं| देहरादून, बैंगलोर के बाद हाल ही में मुख्यमंत्री ने मुंबई का दौरा किया जन्हा उन्होंने देश के कई प्रतिष्ठित उद्यमियों के साथ मुलाक़ात की और उन्हें उत्तराखंड में निवेश करने का आग्रह किया|
अगर आकड़ो के माने तो सत्ता में आने से लेकर अबतक त्रिवेन्द्र सिंह रावत लाखो करोडो के उद्योग और लाखो रोजगार पैदा करने का दावा कर चुके हैं| अकेले देहरादून निवेश अधिवेशन में 1 लाख 25 हजार करोड़ के निवेश के पत्रों पर हस्ताक्षर हुए थे| उसके बाद भी ना जाने कितने अधिवेशन व दावे निवेश के किये जा चुके हैं| सरकार आकड़ो में हेरफेर करके राज्य के वित्तीय हालातो पर पर्दा डालने में लगी हैं| उत्तराखंड के हालत यह हैं की दिवाली के समय पर सरकार को ऋण के लिए केंद्रीय बैंक का रुख करना पड़ सकता हैं|
राज्य सरकार लोगो को निवेश के लिए प्रेरित कर तो रही हैं लेकिन सरकार की खुद की वेबसाइट के अनुसार राज्य में केवल 320 ओद्योगिक प्लाट, कमर्शियल प्लाट श्रेणी में, कमर्शियल ऑफिस स्पेस 06, मॉल मल्टीप्लेक्स कुल 6, सर्विस अपार्टमेंट 6, वेडिंग पॉइंट 6, होटल 7, रिजोर्ट/ मोटेल 5, ईको रिजोर्ट 2, होस्टल/ गेस्ट हाउस 04, पेट्रोल पंप 5, कीओस्क 6 की व कुछ आवासीय प्लाट व अन्य स्थान खाली हैं| प्रमुख स्थानों जैसे देहरादून, हरिद्वार जैसी जगहों पर ओद्योगिक उपलब्धता शुन्य हैं| अधिकतर प्लाट एस्कॉर्ट फार्म, पन्त नगर व सितारगंज में ही नज़र आते हैं| एस्कॉर्ट फार्म एंड सितारगंज II अभी विकसित ही हो रहे हैं व लोग यंहा लागत ज्यादा होने के कारण उद्योग लगाना ही नहीं चाहते|
हरिद्वार के ही कई उद्योगपतियों से बात करने पर मालूम हुआ की जिन लोगो ने यंहा जगह ली थी उनमे से कई लोगो ने उन्हें अभी तक बनाया भी नहीं हैं और कई प्लाट वाले ऐसे भी हैं जिन्होंने अपनी किश्ते समय पर नहीं भरी हैं/ या भरी ही नहीं हैं| ऐसे भूखंड स्वामियों को सरकार द्वारा और समय दिया जाना उत्तराखंड सरकार की निति और नियत पर संशय पैदा करता हैं| हरिद्वार और देहरादून ऐसे क्षेत्र हैं जो की पूरी तरह विकसित हैं और जन्हा सरकार बोली लगाकर अच्छे मूल्य पर इन भूखंडो को बेच भी सकती हैं जिससे की निवेश व रोजगार का सृजन हो सके|
सभी जानते हैं की उत्तराखंड का अधिकतर क्षेत्र वनों व आरक्षित भूमि से घिरा हैं व अन्य खाली जगहों पर खेती होती हैं| आकड़ो के अनुसार सरकार के पास खुद भूमि की कमी हैं जिसके कारण राज्य में सडको व अन्य निर्माण के लिए वन विभाग को भूमि का हस्तांतरण करवाने के लाले पड़े हैं और इस कारण से कई परियोजनाए ठन्डे बसते में जा चुकी हैं और उन परियोजनाओ का पैसा बर्बाद हो रहा हैं|
जब संसाधन सीमित हैं तो क्या उत्तराखंड सरकार अब हवा में उद्योग लगाएगी? उत्तराखंडी लाटे के क्रियाकलापों को देखकर तो यही लग रहा हैं की सरकार हवा में उद्योग लगाकर लोगो से निवेश करवाएगी और लोगो के लिए रोजगार का सृजन करेगी|