उत्तराखंड के औली क्षेत्र में गुप्ता बंधुओ की हो रही शादी के कारण पूरे राज्य में हाय तोबा मचा हुआ हैं| लोगो का कहना हैं की इस प्रकार के आयोजन उत्तराखंड में नहीं होने चाहिए लेकिन मानना पड़ेगा की इस प्रकार के आयोजन राज्य की आर्थिक सेहत के लिए बहुत जरूरी भी हैं यदि उनसे पर्यावरण व स्थानीय लोगो को कोई परेशानी ना हो तो|
कब तक उत्तराखंड शराब व खनन के राजस्व पर विकास की पींगे भरता रहेगा और क्या खनन से राज्य के पर्यावरण से खिलवाड़ नहीं हो रहा हैं| पूरी की पूरी माफिया राज्य सरकार के सहयोग से खनन में लगी हुई है क्या यह पर्यावरण के साथ खिलवाड़ नहीं हैं| एक तो नदी से चुगान की अनुमति लेकर बड़ी बड़ी मशीनों से खुदान किया जाता है और इतना ही नहीं एक ही बे बिल पर दस दस ट्रको की आवाजाही हो जाती हैं क्या यह पर्यावरण के लिए सही हैं|
शराब उत्तराखंड के लिए एक अभिशाप की तरह हैं उससे जितना हमें राजस्व मिला है उससे ज्यादा तो उसने हमारी नस्लों का पतन किया हैं| आज सूरज अस्त पहाड़ी मस्त यूं ही नहीं प्रचलित हैं| सबको पता हैं की वस्तुस्थिती क्या है लेकिन स्वीकारने को हम लोग तैयार ही नहीं हैं| शराब से बढ़ा हुआ राजस्व विकास की नहीं हमारे पतन की कहानी दर्शाता हैं| क्या हमें इसकी अनुमति देनी चाहिए?
औली जैसे भव्य आयोजनो को सरकार द्वारा कुछ शर्तो के साथ अनुमति देनी चाहिए| ऐसे आयोजनों के लिए सरकार को पूरे उत्तराखंड में जगहों को चिन्हित करना चाहिए ताकि पर्यावरण के साथ खिलवाड़ भी ना हो और सरकार को आयोजनों से राजस्व भी मिलता रहे| यह सभी जानते हैं की शादी जैसे आयोजनों में लोग दिल खोलकर पैसा खर्च करते हैं तो क्यों ना इन अल्प आयोजनों से राजस्व व क्षेत्रीय रोजगार को बढ़ावा दिया जाए|
इस प्रकार के आयोजनों से ज्यादा से ज्यादा लोग उत्तराखंड की और आकर्षित होंगे व सेवा आधारित रोजगार का विस्तार भी होगा और उत्तराखंड के लिए शराब, खनन से ज्यादा श्रेयकर इस प्रकार के उद्योग ही हैं| क्या पता कल का फिल्म फेयर या मिस इडिया व अन्य प्रकार के आयोजन विदेशो में ना होकर उत्तराखंड में ही हो|
ज़रा सोचिये की क्या विरोध की राजनीति या श्रेय की होड़ ही सबकुछ हैं क्या आगे की सोचना और देखना गलत हैं? उत्तराखंड केवल और केवल सेवा आधारित उद्योगों पर आधारित रहकर ही विकास कर सकता हैं क्योकि इसके लिए कोई कारखाने नहीं लगाने, बड़ी बड़ी भूमियो पर SEZ नहीं बनाना पड़ेगा, ना ही राज्य सरकार को इसपर कोई छूट देनी हैं व इसकी करो की दर सबसे ज्यादा 18% हैं|
बेहतर होगा की ऐसे आयोजनों के लिए हम अपना दिल खोले व एक इमानदार लोगो का दल बनाये जो उत्तरखंड में ऐसे आयोजनों के जगहों की पहचान करेगा व उसके लिए अनुमति भी देगा व साथ ही साथ यह भी देखेंगा की क्या आयोजक इस अमुमति का बेजा फायदा तो नहीं उठा रहे हैं| अगर ऐसा होगा तो उसपर 500 प्रतिशत अर्थदंड लगाया जाएगा व क्षतिपूर्ति भी करवाई जायेगी|