राज्य में कोरोना बिजली की रफ़्तार से फ़ैल रहा हैं लेकिन प्रशासन हैं की प्रवासियों के आगमन के बावजूद भी नौसखिये की तरह काम कर रहा हैं। जहा एक और कोरोना के लक्षण वाले लोगो को तुरंत क्वारंटीन सेंटरों में भेज रहा हैं वही सतपाल महाराज के घर में दिल्ली से आये लोगो की आ तो जांच हुई और ना ही किसी को भी सही तरीके से क्वारंटीन किया गया जिसके कारण उनके घर में इतने सारे लोगो को कोरोना का संक्रमण झेलना पड़ा।
सतपाल महाराज जो की खुद एक मंत्री व लोगो के आध्यात्मिक गुरु भी हैं उन्होंने भी इन सभी चीज़ो को गंभीरता से से नहीं लिया जिसके कारण पूरे देश में लाटे की कैबिनेट पहली कैबिनेट हैं जो सचिवों के साथ एक मंत्री की गैरज़िम्मेराना हरकत के कारण पूरी की पूरी क्वारंटीन हो गयी है।
सतपाल महाराज व परिवार के लोगो को कोरोना होने के कारण अफसरों के हाथ पाँव फूले हुए हैं क्योकि उन्हें पता हैं की यंहा नियमो की धज्जिया उड़ाई गयी थी। जब नियम हैं की जो लोगो रेड जोन से आएंगे तो उन्हें 14 दिन क्वारंटीन में रहना हैं तो महाराज के घर आये हुए लोगो को किसने यह छूट दी? क्यों दी और किसके कहने पर दी गयी? क्या नियम और दंड केवल आम जनता के लिए हैं।
उत्तराखंड में आम जनता को तो पुलिस व प्रशासन रातो रात था ले रहा था तो फिर श्रीमती सतपाल महाराज को इलाज के लिए ले जाने में प्रशासन ने एक दिन का इंतज़ार क्यों किया? इसको देखकर तो लगता हैं की प्रदेश में माननीयो व आम जनता के लिया अलग अलग संविधान हैं क्योकि एक्ट एक हैं लेकिन कार्यवाही दो प्रकार की हो रही हैं यदि यही कोरोना पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत व किसी अन्य कोंग्रेसी नेता के यहाँ होता और इतने सारे लोगो को संक्रमण फैलता तो प्रशासन तुरंत केस दर्ज करके हाय तोबा मचा देता। लेकिन सत्ता पर बैठे लोगो के लिए कानून व संविधान उनकी पावर के सामने कुछ भी नहीं हैं।
उत्तराखंड की रावत सरकार ने अपने माननीयो के लिए उत्तराखंड में दोहरे संविधान की रचना ही कर डाली क्योकि जिन कानूनों के उलंघन के लिए गौलापार के 400 लोगो के ऊपर भारतीय दंड संहिता 147 व 341 के तहत उत्तराखंड सरकार ने मुक़दमा दर्ज कराया हैं|
वही शिक्षा मंत्री अरविन्द पाण्डेय, विधायक राजकुमार ठुकराल, आदेश चौहान, हरभजन सिंह चीमा व पूर्व सांसद बलराज पासी के खिलाफ 2012 के जसपुर में राजमार्ग जाम करने का मुकदमा दर्ज हुआ था जिसकी सुनवाई काशीपुर की अपर मुख्य न्यायिक जज की अदालत में चल रही थी और अदालत में ना आने के कारण इन सभी के खिलाफ न्यायलय ने गैरजमानती वारंट जारी कर दिए थे|
होना तो यह चाहिए था की इन सभी लोगो को न्यायालय का सम्मान करते हुए काशीपुर में न्यायालय के समक्ष उपस्थित होना चाहिए था लेकिन रावत सरकार ने न्यायालय की काट करते हुए अपर सचिव के द्वारा जिला जज को एक पत्र भेजा और कहा की सरकार जनहित में यह केस वापिस ले रही है|
यही नहीं 17 अगस्त को ही कांग्रेस के पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत ने इस रोड पर नशे के विरोध में एक रैली निकली थी जिसमे सैकड़ो लोग शामिल हुए थे जिसके कारण इसी रोड पर जाम लग गया था लेकिन सरकार व पुलिस ने किसी के खिलाफ भी कोई केस दर्ज नहीं किया इससे ही लगता हैं की उत्तराखंड में रावत सरकार दोहरे संविधान पर चलती हैं|
हम आपको बताना चाहेंगे की जिस मार्ग को राज्य सरकार राजमार्ग बता रही हैं वो मार्ग वर्ष 2014 में राज्य सरकार की संस्था लोक निर्माण विभाग को स्थान्तरित हो चुका व तत्कालीन अधिशाषी अभियंता श्री रणजीत रावत जी ने हमारे समक्ष ही उसका चार्ज लिया था| आज के समय में राजमार्ग तीन पानी से गौलापार होते हुए काठगोदाम तक जा रहा हैं जिसका निर्माण सद्भाव इंजिनियर कर रहा हैं एव अभी यह निर्माणाधीन हैं| इसलिए राजमार्ग रोकने का केस भी उन 400 लोगो पर नहीं बनता हैं|
31 अगस्त को हल्द्वानी में गौलापार के किसानो द्वारा जो रैली की गयी थी वो पूरी तरह से शांतिपूर्ण थी उसमे लोगो ने किसी भी प्रकार का उपद्रव नहीं किया| उस रैली में कम से कम 4000 लोग शामिल थे जो अपनी बात प्रशासन के सामने रखना चाहते थे| यह प्रशासन की अदूरदर्शिता ही रही की लोगो से गौलापार में मिलने ना जाकर उन्हें शहर में आने दिया गया अगर यही प्रशासनिक लोग नेतृत्व से मिलकर गौलापार में ही बात कर लेते तो इतनी संख्या में लोगो को हल्द्वानी में नहीं आना पड़ता व अन्य लोगो को जाम से नहीं जूझना पड़ता|