उत्तराखंड की त्रिवेन्द्र सिंह रावत सरकार ने कोरोना को लेकर एक वेबसाइट बनायी हैं जिसमे लोगो से आव्हान किया गया हैं की वो आये और अपनी तरफ से जो सहयोग हो सकता हैं वो करे| हमारे प्रतिनिधि ने इस वेबसाइट का जायजा लिया तो पाया की इस वेबसाइट को बनाने से पहले किसी भी प्रकार की कोई योजना नहीं बनाई गयी हैं|
क्योकि होना तो यह चाहिए था की वेबसाइट में लोगो से आवेदन कराने के लिए पिन नंबर व जिले को सबसे ज्यादा महत्त्व देना चाहिए था क्योकि आपातकाल में स्थान के हिसाब से लोगो को मदद के लिए तुरंत बुलाया जा सकता था लेकिन इस स्थिति में स्थान के हिसाब से लोगो को छाटने में बहुत समय लगेगा|
हमने जब इस वेबसाइट में आवेदन किया तो पाया की त्रिवेन्द्र सिंह रावत सरकार ने इस वेबसाइट के केवल 13 जिले के लोगो को ही उत्तराखंडी माना हैं और सिर्फ और सिर्फ 13 जिलो के ही लोगो को आवेदन के लिए आव्हान किया हैं| इसका मतलब तो यही हुआ की पूरे उत्तराखंड में उत्तराखंडी रहते हैं उससे बाहर नहीं|
हम सभी जानते हैं की उत्तराखंड में रोजगार ना होने के कारण हमारे लोग लेह से लेकर कन्याकुमारी व भुज से लेकर सुदूर अरुणाचल तक फैले हुए हैं व लाटी सरकार के अनुसार वो लोग उत्तराखंडी नहीं हैं अगर हैं भी तो उन्हें मदद की जरूरत बिलकुल नहीं होगी|
अगर सरकार हम लोगो के प्रति संवेदनशील होती तो वो हर एक उत्तराखंडी के लिए अपने को समर्पित करती| लेकिन ऐसा हुआ नहीं जबकि इसमें सरकार का एक ढेला भी नहीं खर्च होता क्योकि देश के प्रमुख शहरो में हमारे लोग फैले हुए हैं उनमे से कुछ दुर्बल हो तो कुछ सबल भी हैं जो की क्षेत्रीय उत्तराखंडी संगठनो से जुड़े हुए हैं|
उत्तराखंड सरकार को उन संगठनो से बात करके उस उस क्षेत्र में रह रहे दुर्बल व असहाय लोगो को उनका फ़ोन नंबर देना था ताकि उन लोगो को भी उत्तराखंड से बाहर मदद मिल पाती जो बुरी तरह टूट चुके हैं| इससे लोगो को मदद भी मिल पाती व अन्य लोग भी उत्तराखंडी सामजिक संगठनो से जुड़कर क्षेत्र में उत्तराखंडी संस्कृति को बढाते|
बिना किसी सरकारी मदद व घोषणा के कई उत्तराखंडी संगठन बहुत ही शानदार काम कर रहे हैं जैसे की मुंबई में कोथिग, हैदराबाद में Ks-Helping-Hands-Charitable-Trust व बेंगलुरु में उत्तराखंड संस्कृति परिषद जैसे संगठन बिना किसी सरकारी मदद के बहुत ही बढ़िया कार्य कर रहे हैं|
हमें दुःख हैं की उत्तराखंड की रावत सरकार केवल और केवल गुजरातियों के प्रति सेवेदंशीलता से काम करती हैं तभी तो वॉल्वो बसों में हर एक गुजराती को लॉक डाउन के बावजूद ससम्मान गुजरात तो छोड़कर आई जबकि गृह मंत्रालय का स्पष्ट आदेश था की बसों में लोगो को ना ले जाया जाए और खासकर वातानुकूलित बसों में तो कभी नहीं|
अभी भी समय हैं की सरकार चेते व उत्तराखंड के क्षेत्रीय संगठनो से संपर्क कर जरूरत मंद व संगठनो के बीच एक सेतु का काम करे| इससे ना तो सरकार पर कोई आर्थिक बोझ आएगा और ना ही सरकार को अपने कर्मचारियों की नियुक्ति करने की जरूरत पड़ेगी| इस विधि से सरकार का बोझ भी कम होगा और सरकार की दूरदर्शिता की प्रशसा भी|
निति कहती हैं की विपत्ति के समय द्वेष, वर्ण, आसन, शत्रुता को छोड़ अपने स्तर पर मदद के लिए आगे आना चाहिए|
यदि आप भी किसी ऐसे व्यक्ति या परिवार के विषय में जानते हैं जो इन राज्यों में फसा हैं व उन्हें आश्रय या खान पान की आवश्यकता हैं तो आप इन नम्बरों 080 2845 3845 or 05946 222224 पर whatsapp के द्वारा संपर्क कर सकते हैं|