उत्तराखंड अब उत्तराखंड नहीं रहा क्योकि नेताओ की वोट की राजनीति व अपने ही लोगो में एकता ना होने के कारण हम लोग हाशिये पर जा रहे है| पलायन का कारण सरकारे ही नहीं हम भी हैं क्योकि हमने अपने अधिकारों के लिए कभी लड़ना ही नहीं सीखा| हम तो वो लोग हैं जो कभी बुरा हो भी जाता था तो गोल्जु के दरबार में अर्जी लगा आते थे और जो हो रहा हैं अपनी किस्मत मान लेते थे|
उत्तराखंड में लोगो के साथ साथ सरकारी उदासीनता के कारण त्यौहार भी पलायन करते जा रहे है| हरेला, खतद्द्वा, गंगा दशहरा, घुघूत, घी त्यार हो या उत्तरेनी सभी त्यौहार सरकारी उपेक्षा का शिकार होते जा रहे हैं और भारत में केवल दिल्ली ही एक राज्य है जन्हा राज्य सरकार उत्तराखंडी त्योहारों को संरक्षण दे रही हैं चाहे वोट के लिए ही क्यों ना हो|
आज उत्तराखंड की यह हालत हैं की उसके अपने ही तीज त्यौहार बेगाने से हो गए हैं और प्रवासियों के त्यौहार धूम धाम से राजकीय पर्व की तरह मनाये जा रहे हैं| उत्तराखंड का अपना सबसे प्रसिद्ध व हर घर में मनाया जाने वाला हरेला त्यौहार जो सालो से उत्तराखंड की पहचान हैं और लोगो को प्रकृति से जोड़ता है वो सरकारी उपेक्षा का शिकार हो गया हैं और प्रवासियों के त्यौहार उत्तराखंड की पहचान बनते जा रहा हैं|
आज उत्तराखंड सरकार के लाटे मुखिया ने जो हर त्योहार में अपनी एक फोटो चस्पा कर उत्तराखंडियो को शुभकामनाये देकर इतिश्री कर लेते थे| आज उनके अपर सचिव सुरेश चन्द जोशी ने अपर मुख्य सचिव, सामान्य प्रशासन, उत्तराखंड सरकार को एक पत्र लिखा हैं जिसमे लिखा गया है की 02 नवंबर 2019 को प्रदेश के सभी शासकीय व अर्धशासकीय कार्यालयों में छठ पर का अवकाश किये जाने की अपेक्षा की गयी है कृप्या तदनुसार आदेश जारी करना चाहे|
उत्तराखंड में वो दिन अब दूर नहीं हैं जब लोग अपने त्योहारों से ही बेगाने हो जायेंगे और अगर आपको लगता है की उत्तराखंड में सरकार प्रवासियों के सम्मान के लिए यह कर रही है तो भूल जाए क्योकि यह उत्तराखंड में एक प्रदेश से आने वाले बाबुओ के जमात की बढती ताकत को दर्शा रहा हैं|
अब तो भाई लोगो पहाड़ में छठ की छुट्टी व हिलटॉप की घुट्टी ही चलेगी।