बीसीसीआई को पूरे 33 महीने के बाद स्वायत्त रूप से बुधवार को नया अध्यक्ष मिल गया। पूर्व भारतीय कप्तान सौरभ गांगुली के रूप में पहली बार भारतीय क्रिकेट का प्रबंधन एक खिलाड़ी के हाथ में आया है। खास बात यह है कि गांगुली को 2000 में भारतीय टीम की कप्तानी उस समय मिली थी जब फिक्सिंग के दाग से क्रिकेट शर्मसार था।
हालांकि गांगुली ने चुनौतियों का डटकर सामना किया और प्रतिभावान युवा खिलाड़ियों की दमदार टीम खड़ी की और देश को बड़ी सफलताएं दिलाई। आज भी जब बीसीसीआई की कमान दादा के हाथों में आई है, बोर्ड की साख खतरे में है। क्रिकेट प्रशंसकों को उम्मीद है कि टीम की तरह बोर्ड को भी दादा बेहतर स्थिति में पहुंचा देंगे।
सौरभ गांगुली ने कहा भी है कि बीसीसीआई की छवि खराब हुई है और यह उनके लिए कुछ अच्छा करने का मौका भी है। आपको बता दें कि अब तक प्रशासनिक समिति की निगरानी में बोर्ड का कामकाज चल रहा था लेकिन माना जा रहा है कि गड़बड़ियां अभी पूरी तरह से दूर नहीं हो पाई हैं।
ऐसे में दादा के सामने कप्तानी की तरह बोर्ड अध्यक्ष के तौर पर भी चुनौतियां कम नहीं है। कहा जा रहा है कि बोर्ड पर काबिज रहे लोगों ने नए चेहरों के नाम पर अपने ही रिश्तेदारों को बिठा दिया है। दरअसल, क्रिकेट से जुड़ा ग्लैमर, पैसा और पावर ताकतवर लोगों को आकर्षित करता है। ऐसे में दादा की सबसे बड़ी चुनौती काबिल और पेशेवर लोगों को बढ़ावा देने और बोर्ड के कामकाज को पारदर्शी व प्रफेशनल बनाने की होगी।
‘रॉयल बंगाल टाइगर’ के नाम से मशहूर पूर्व भारतीय कप्तान सौरभ गांगुली ने बुधवार को बीसीसीआई के 39वें अध्यक्ष के तौर पर पदभार संभाल लिया। दुनिया के सबसे अमीर क्रिकेट बोर्ड के अध्यक्ष बनने से एक कथन फिर सही साबित हुआ- एक बार जिसने नेतृत्व किया, वह हमेशा नेतृत्वकर्ता की भूमिका में रहता है। इसके साथ ही सुप्रीम कोर्ट द्वारा नियुक्त प्रशासकों की समिति (सीओए) का 33 महीने का कार्यकाल भी खत्म हो गया।
केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह के बेटे जय शाह को सचिव बनाया गया है। अपने कार्यकाल के दौरान गांगुली पूर्व अध्यक्ष एन श्रीनिवासन और पूर्व सचिव निरंजन शाह जैसे पूर्व पदाधिकारियों के साथ समन्वय का प्रयास करेंगे जिनके बच्चे अब बीसीसीआई का हिस्सा हैं। उत्तराखंड के माहिम वर्मा नए उपाध्यक्ष बनाए गए हैं। बीसीसीआई के पूर्व अध्यक्ष और मौजूदा वित्त राज्य मंत्री अनुराग ठाकुर के छोटे भाई अरुण धूमल कोषाध्यक्ष जबकि केरल के जयेश जॉर्ज संयुक्त सचिव बने।
47 साल के गांगुली को तब टीम इंडिया का कप्तान बनाया गया था, जब भारतीय क्रिकेट साल 2000 में मैच फिक्सिंग स्कैंडल के बाद अंधेरे में जाता नजर आ रहा था। गांगुली ने चुनौतियों का सामना किया और प्रतिभावान युवा क्रिकेटरों की एक टीम बनाई। तब उन्हें क्रिकेट के दिग्गजों की आलोचनाओं का सामना भी करना पड़ा था।
वनडे में फिर दिग्गज सचिन तेंडुलकर के साथ ओपनिंग पार्टनरशिप की बात हो, युवराज सिंह और वीरेंदर सहवाग जैसे युवाओं को सपोर्ट करना हो, गांगुली हमेशा आगे रहे। हालांकि, एक बड़े प्लेयर से शीर्ष प्रशासक के रूप में बदलाव आसान नहीं होगा। अपनी अगुआई में 21 टेस्ट मैचों में भारत को जीत और 2003 वर्ल्ड कप के फाइनल तक का सफर तय कराने वाले गांगुली ने इससे पहले भी प्रशासक की जिम्मेदारी निभाई। वह क्रिकेट असोसिएशन ऑफ बंगाल के पहले सचिव रहे और फिर अध्यक्ष बने।
इंटरनैशनल क्रिकेट में 18,000 से ज्यादा रन बनाकर रिटायरमेंट लेने वाले सौरभ गांगुली ने इडेन गार्डेंस में बैठकर प्रशासनिक कामकाज का भी अच्छा-खासा अनभुव बटोरा है। अब अपने इस अनुभव को वह बीसीसीआई के संचालन में इस्तेमाल करेंगे। उन्हें बोर्ड के कामकाज की एक-दो चीजों की जानकारी पहले से भी है, जब वह बीसीसीआई की टेक्निकल कमिटी और क्रिकेट अडवाइजरी कमिटी के सदस्य रहे थे। क्रिकेट अडवाइडरी कमिटी में दादा सचिन तेंडुलकर और वीवीएस लक्ष्मण के साथ तीसरे सदस्य थे।
आज से सौरभ गांगुली के पास इस पद पर बने रहने के लिए 9 महीने का समय होगा, जिसमें वह बोर्ड और भारतीय क्रिकेट की खोई साख को वापस स्थापित करने की कोशिश करेंगे। 2013 में आईपीएल में सामने आई स्पॉट फिक्सिंग घोटाले के सामने आने बाद बोर्ड और भारतीय क्रिकेट की छवि को डेंट लगा था।
इंटरनैशनल क्रिकेट में एक सफल कप्तान के तौर पर सौरभ गांगुली ने अपनी पहचान अपने साहसिक फैसलों और आक्रामक कप्तानी के दम पर कायम की थी और अब एक बार फिर इंटरनैशनल क्रिकेट कांउसिल (ICC) में जब भारत को अपनी छवि फिर से दमदार करने की जरूरत है तो सभी की आंखें गांगुली पर ही टिकी हैं। इस काम के लिए दादा की नेतृत्व क्षमता का एक बार फिर टेस्ट होगा।
गांगुली के नेतृत्व में बीसीसीआई को आईसीसी के साथ जिन मुद्दों पर आगे बढ़ना है। गांगुली के लिए वह पिच बहुत आसान नहीं है। उनका सबसे बड़ा मुद्दा यह होगा कि आईसीसी द्वारा जो फ्यूचर टूर प्रोग्राम (FTP) का प्रस्ताव घोषित किया गया है, इससे सीधे तौर पर बीसीसीआई का राजस्व प्रभावित होगा। इसके अलावा उनके सामने कई घरेलू चुनौतियां भी होंगी।
उन्हें राष्ट्रीय टीम में बतौर कप्तान खुद को साबित करने में 5 साल का समय मिला था और उन्होंने यहां अपनी ऐसी छाप छोड़ी कि वह फैन्स और क्रिकेट के जानकारों के दिलों में आज तक ताजा हैं। लेकिन इस बार खुद को साबित करने के लिए उनके पास अगले साल सिर्फ सितंबर तक का समय है। इसके बाद दादा को कूलिंग ऑफ पीरियड पर जाना होगा।
उन्होंने खुद माना है कि अभी जो चुनौतियां उनके सामने हैं वह ‘इमर्जेंसी जैसे हालात’ वाली हैं। लेकिन गांगुली को बखूबी पता है कि इन सब चुनौतियों से कैसे पार पाना हैं। इनमें से कई मुद्दे ऐसे भी हैं, जो गांगुली के सामने तब से हैं, जब वह एक खिलाड़ी के तौर पर यहां खेलते थे।