आज उत्तराखंड में कोरोना के इक्के दुक्के मामले ही सामने आ रहे हैं और जो मामले सामने आये थे वो जमातियो व बाहरी लोगो के कारण ही आये थे| आज और पहले की स्थिति में बहुत ही अंतर है पहले कोरोना केस केवल सेकड़ो में आ रहे थी व आजकल कोरोना के मरीजो की संख्या हज़ारो में आ रही हैं खासकर महानगरो में जन्हा पर स्वास्थ व प्रशासनिक व्यवस्था चुस्त दुरुस्त है|
उत्तराखंड में पहाड़ के प्रमुख द्वार हल्द्वानी, देहरादून, हरिद्वार व उधमसिंह नगर ही हैं और सबसे बसे ज्यादा कोरोना की मार भी इन्ही जिलो पर ही पड़ी है| जिसके कारण उत्तराखंड में कोरोना के मरीजों की संख्या एकदम से बढ़ गयी व इसके कारण पूरे राज्य में नहीं पूरे देश में हल्द्वानी एक ऐसा शहर बन गया जन्हा कर्फ्यू लगाना पड़ गया|
आज जब पूरे देश में कोरोना के मरीजो की संख्या 50,000 से ज्यादा हो चुकी हैं वही उत्तराखंड सरकार जन भावना के दबाव में प्रवासियों को लाने की कोशिशो में लगी है जबकि हालात कुछ और ही कह रहे हैं| प्रवासियों के मुद्दे पर सरकार का प्रशासनिक अमला व नीतिया दोनों ही ढेर हैं व सरकार ऐसे समय में यह कदम उठा रही है जब प्रदेश में कोरोना लगभग नियंत्रण में हैं|
आप और हम सरकार व प्रदेश की स्वास्थ व्यवस्था को अच्छे से जानते हैं| कोरोना वायरस के विषय में जो भी जानकारी सामने आ रही है उसके अनुसार उसे पहचान पाना बहुत ही कठिन हैं खासकर तब जब दिल्ली पुलिस के एक जवान की आकस्मिक मौत पर जांच की गयी तो पाया गया की वो कोरोना से संक्रमित था जबकि ना तो उसमे कोई लक्षण थे और पिछले ही दिन वो अपनी ड्यूटी करके आया था| सबसे चौकाने वाली बात तो यह थी की ना तो उसे कोई बिमारी थी ना कोई अन्य दिक्कते उस जवान की उम्र भी मात्र 31 साल थी|
क्या ऐसे में प्रदेश सरकार का प्रवासियों को लाना बुद्धिमत्ता कहलायेगा? जब प्रदेश में बिमारी नियंत्रण में है| सरकार क्यों एक सुदृढ़ व्यवस्था को खतरे में डाल रही हैं? आज उत्तराखंड में 9 जिले ऐसे हैं जन्हा कोरोना का कोई भी केस नहीं हैं क्या सरकार सुनिश्चित कर सकती हैं की प्रवासियों से उत्तराखंड में कोरोना के केस नहीं बढ़ेंगे? क्या सरकार उत्तराखंड की स्वास्थ व्यवस्था पर श्वेत पत्र जारी कर सकती है?
प्रवासियों को लाकर सरकार भूसे के ढेर में चिंगारी का काम कर रही है| आज हर कोई मुसीबत में हैं जो घर में हैं वो भी जो बाहर हैं वो भी| इसलिए सरकार को बुद्धिमत्ता के साथ प्रशासनिक उपायों पर विचार करना चाहिए क्योकि ना सरकार के पास संसाधन हैं ना ही व्यवस्था| बेहतर होगा की सरकार जो भी प्रवासियों की जानकारी हैं उसपर काम करे व सम्बंधित जिलो के जिलाधिकारियो से सीधा संपर्क करके प्रवासियों को राहत दिलवाए|
क्योकि जो जन्हा हैं वो अभी सुरक्षित हैं व कोई नहीं जानता की सफ़र के दौरान कौन कोरोना वायरस की चपेट में आकर पूरे पहाड़ की व्यवस्था को ध्वस्त कर दे| हम सभी को पता हैं की कोई भी यह जानबूझकर नहीं करेगा लेकिन अनजाने में ही सही पर उसके कारण पहाड़ पूरे पहाड़ में कोरोना का संक्रमण बढ़ सकता हैं|
आज जब कोरोना का कहर 50 हजार का आकडा पार कर चुका हैं तो इस समय लोगो की आवाजाही करवाना मूर्खता व आत्महत्या से कम नहीं हैं और वो भी तब जब सरकारों ने शराब की दुकाने खोलकर पूरी व्यवस्था ही ध्वस्त कर दी हैं| सरकार के आदेश ही उसके मूर्ख होने का परिचय दे रहे है क्योकि शादी में 5 लोग, मौत में 20 लोग व ठेके पर कोई नियम नहीं| यह सरकारों की मूर्खता नहीं तो और क्या हैं?
यंहा सरकार ही नहीं हमें भी सोचना पड़ेगा की इस महामारी के समय हमें सफ़र करना चाहिए की नहीं क्योकि यंहा सरकार से ज्यादा आपकी जिम्मेवारी बनती हैं की आप स्वय व परिचितों को इस गंभीर के संकट में ना डाले क्योकि उत्तराखंड में साधन व सुविधाए नाममात्र भी नहीं हैं क्योकि कल ही मुनस्यारी में जली हुई युवती को कंही भी इलाज नहीं मिला और उसे सेकड़ो किलोमीटर दूर सुशीला तिवारी अस्पताल हल्द्वानी में भेजा गया जबकि बीच में तीन तीन जिले पड़ते थी और इलाज कंही भी नहीं संभव था|
आपको यह भी सोचना चाहिए जो सरकार एक जंगल की आग के सामने खुद को बेबस समझती हैं जो की हर साल की बात हैं वो कोरोना जैसी बिमारी जिसका ना सर पता हैं ना पाँव, उससे निपट पाएगी? बेहतर होगा की जन्हा हैं वही रहे व आसपास रहने वाले अपने उत्तराखंडी परिवार की जो संभव हो सके वो मदद करे या हमसे संपर्क करे| हम आपसी सहयोग से आपतक मदद पहुचाएंगे|
वैसे अगर सरकार चाहे तो प्रवासियों के लिए एक टीम बनाकर काम किया जा सकता है लेकिन हमारी सरकार तो लाटी ठहरी|
लेखक
जीवन पन्त
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