चाणक्य को भारतीय राजनीति का जनक माना जाता हैं क्योकि उन्होंने राष्ट्र निर्माण व प्रजा की भलाई के लिए कूटनीति व साम, दाम, दंड, भेद की निति का सृजन किया था जिससे की बिना रक्त रंजित हुए नीतियों व लक्ष्य को पूरा किया जा सके पर आधुनिक राजनीति ने साम, दाम, दंड, भेद को येन केन प्रकरेण में परिवर्तित करके रख दिया हैं व इसे अपने लक्ष्यों को साधने का मंत्र बना लिया हैं| उनके लिए नियम व निति का कोई महत्त्व नहीं रह गया है|
आजकल उत्तराखंड में शिक्षको का अकाल है और भारतीय जनता पार्टी ने स्वर्गीय प्रकाश पन्त की पत्नी श्रीमती चंद्रा पन्त जो की एक शिक्षिका है को स्वर्गीय पन्त की खाली हुई सीट से अपना प्रतिनिधि नियुक किया हैं और मजे की बात तो देखिया की सरकार ने आनन् फानन में श्रीमती चंद्रा पन्त को स्वेच्छिक अवकाश भी दे दिया हैं जबकि अगर कोई आम आदमी होता तो स्वेच्छिक अवकाश लेने के लिए चप्पले घिस चुका होता पर स्वेच्छिक अवकाश नहीं मिल पाता|
इस प्रकरण के देखकर तो यही लगता हैं की उत्तराखंड में राजनिति हाशिये पर हैं और कार्यकर्ता सिर्फ और सिर्फ भीड़ इकठ्ठा करने के लिए रह गए है| क्योकि श्रीमती चंद्रा पन्त का राजनीति से कोई लेना देना नहीं था और ना ही उन्हें उसका अनुभव था| उसके बावजूद भी उन्हें टिकट देना पार्टी की खोखली होती निति व हावी होते परिवारवाद को दर्शाता हैं|
भारतीय जनता पार्टी के नियमो के अनुसार चुनाव लड़ने के लिए व्यक्ति को पार्टी का सक्रिय सदस्य होना चाहिए और उसे पार्टी के नियमो व कार्यो की पूर्ण जानकारी होनी चाहिए चूंकि श्रीमती पन्त अभी तक शिक्षिका थी तो उन्होंने इसमें से एक भी निति का पालन नहीं किया होगा|
तो क्या हम मान ले किए भारतीय जनता पार्टी सिद्धांतो को दिखावा करती हैं और केवल येन केन प्रकरेण से सत्ता में बने रहना चाहती हैं| माना पिथोरागढ़ के लोग स्वर्गीय पन्त से बहुत प्यार करते थे इसका मतलब यह नहीं होना चाहिए की हमें उसका दोहन करना चाहिए|
भारतीय जनता पार्टी के कई अच्छे कार्यकर्ता इस प्रकरण के कारण हाशिये पर चले गए होंगे क्योकि जब इतने साल पार्टी के लिए काम करने के बाद भी इस प्रकार टिकटों का बटवारा होगा तो व्यक्ति निराश ही होगा|
अगर भारतीय जनता पार्टी ने यही टिकट किसी स्थानीय नेता को दिया होता तो लोगो में द्वेष तो होता पर दुःख नहीं क्योकि श्रीमती पन्त का राजनीति से दूर दूर तक का वास्ता नहीं था और ना किसी को उनके राजनीति में आने की कोई संभावना थी|
लेकिन उसके बाद भी इस तरह उनको टिकट देना जबकि वो सरकारी नौकरी पर थी लोगो को अखर सा रहा हैं खासकर उनको जिन्होंने महीनो से (VRS) स्वेच्छिक अवकास के लिए आवेदन किया हैं लेकिन सरकार उनके आवेदन पर कोई कार्यवाही नहीं कर रही हैं|