जब से मुख्यमंत्री योगी आदित्य नाथ ने उत्तर प्रदेश की कमान संभाली है उत्तर प्रदेश मे कानून व्यवस्था व प्रशासनिक तंत्र मे अभूतपूर्व सुधार हुआ हैं लेकिन लगता हैं की प्रशासन अब उत्तर प्रदेश सरकार की जीरों टोलरेंस की नीतियो को अच्छे से समझकर उसे मेनेज करने मे निपुण हो चुका हैं।
नशे का कारोबार
उत्तर प्रदेश सरकार की नीतियो के अनुसार राज्य मे तंबाकू केवल व केवल लाइसेंस प्राप्त दुकानों से ही बिकेंगे लेकिन आज हालात यह है की हर दूसरा दुकानदार तंबाकू उत्पादो की बिक्री कर रहा हैं व प्रशासन आंखे मूँदे बैठा हैं। गाज़ियाबाद व नोएडा मे हालात बद से बदतर हो चुके हैं क्योकि निगम व नोएडा प्राधिकरण शिकायत के बावजूद भी कार्यवाही नहीं कर रहा हैं।
गाज़ियाबाद के वेव सिटि क्षेत्र मे लगभग सभी दुकानों पर तंबाकू उत्पाद की बिक्री हो रही हैं व इस विषय मे निगम आयुक्त व स्वास्थ अधिकारी को जनपक्ष ने शिकायती पत्र भी लिखा था जिसपर दो माह बीतने के बाद भी आजतक कोई कार्यवाही नहीं है जबकि इस विषय को प्रधानमंत्री कार्यालय को भी अवगत काराया जा चुका हैं।
इस बहुमंजिला इमारत मे लोग बिना किसी डर के सिगरेट का प्रयोग करते हैं जो की निवासियों के लिए असुविधा का कारण बन रहा हैं लेकिन प्रशासन व स्थानीय वेव प्रबंधन इसे अनदेखा करता रहा हैं।
नोएडा के सैक्टर 135 मे नोएडा प्राधिकरण ने खोमचे की अनुमति जारी की हैं ताकि लोगो को रोजगार मिल सके। इन खोमचों मे बिना लाइसेंस व शुद्धता के खानपान की वस्तुओ की बिक्री हो रही हैं व इसी के साथ साथ कई दुकानों मे तंबाकू उत्पादो की बिक्री धड़ल्ले से हो रही हैं जबकि इन्हे सिर्फ खाने के सामान के लिए ही अधिकृत किया गया था।
इस क्षेत्र मे लड़के व लदकिया धड़ल्ले से धूम्रपान करते हैं जो अन्य लोगो के लिए जो मध्यावकाश मे खाने के लिए आए हैं परेशानी का सबब बन चुका हैं लेकिन प्रशासन व पुलिस को इससे कोई भी वास्ता नहीं हैं अपितु छापे के दौरान इन दुकानवालो को “प्राधिकरण” से पूर्व सूचना मिल जाती हैं।
बिजली एक समस्या
बिजली वितरण नियमो के अनुसार उत्तर प्रदेश मे “एकल संयोजन” बिल्डरों को जारी किया गया था व यह नीति 2019 मे विसंगतियो के कारण समाप्त कर दी गई थी व आयोग द्वारा यह निर्णय लिया गया था की पूर्व की नीति मे जारी सभी सयोजनो को धीरे धीरे विधुत वितरण कंपनी के अंतर्गत लाया जाएगा।
लेकिन भ्रष्टाचार व बिल्डरों के दबाव के कारण यह नीति पूरी तरह से विफल हो चुकी हैं ओर हालात यह हैं की पश्चिमाञ्चल विधुत वितरण निगम शिकायती पत्रो को छोड़िए वो आरटीआई के तक जवाब नहीं देता हैं। इन विषयो के लेकर हमने निगम से लेकर आयोग तक को पत्र लिखा पर पिछले 1 साल मे आजतक कोई जवाब नहीं आया।
इस विषय पर जनपक्ष व स्थानीय नागरिक पश्चिमाञ्चल विधुत वितरण की महाप्रबंधक मे मेरठ मे कई बार मिल चुके हैं पर अधिकारी बिल्डरों के पक्ष मे नीतीय दिखाकर सभी को चुप करा देते हैं जबकि ऐसा नहीं हैं। नीतीय नागरिकों के हितो के लिए बनाई गई हैं पर जानकारी के अभाव मे अधिकारी लोगो को मूर्ख बना रहे हैं व आरटीआई को दबाकर बैठ जाते हैं।
नीतियो मे पारदर्शिता का अभाव
पूर्वर्ती सरकारो द्वारा बिल्डरों को पूर्व मे कई अनुचित लाभ दिये गए थे जिसके कारण प्रदेश सरकार को करोड़ो का घाटा हुआ था व भारत सरकार के लेखा विभाग ने इसपर अपनी रिपोर्ट भी जारी की थी व जिसके अंतर्गत इन बिल्डरों से बसूली की जानी थी लेकिन प्रशासनिक अमला उन्हे एक विशेषज्ञ के रूप मे सलाह दे रहा हैं की कैसे इस “वसूली” से बचा जाये व यही कारण हैं की इतना समय बीतने के पश्चात भी इन बिल्डरों द्वारा कोई भी राशि अभी तक जमा नहीं की गई हैं।
गाज़ियाबाद विकास प्राधिकरण जो की सरकार की संस्था हैं वो सबसे ज्यादा नियमो की अनदेखी करती हैं व बिल्डरों के प्रभाव मे काम करती है। जीडीए द्वारा एक बहुचर्चित बिल्डर के डीपीआर के विषय मे अखबारो व ऑनलाइन विज्ञापन तो दे दिया की डीपीआर से संबन्धित विसंगतियो व आपतियों के विषय मे आपकी राय दे लेकिन डीपीआर ऑनलाइन नहीं की ताकि आपतिया दर्ज ही न हो सके।
यही नहीं जनपक्ष द्वारा जारी पहली सूचना अधिकार की प्रार्थना की अपील 5 माह बाद 7 दिसंबर को की जाएगी। जबकि इसे कई माह पूर्व ही निस्तारित हो जाना चाहिए था। इससे पूर्व जो सूचना दी गई थी वो अपूर्ण व झूठी थी व इस विषय पर हमने जीडीए संबन्धित अधिकारियों को एक पत्र 12 अक्तूबर 2023 को जारी किया था जिसका जवाब हमे आज तक नहीं मिला हैं।
ऐसा नहीं हैं की बिजली व जीडीए ही आदेशो की अवहेलना व नीतियो का दो दोहन कर रहे हैं। उत्तर प्रदेश मे सभी विभाग एक से बढ़कर एक हैं जो बिल्डरों के प्रभाव मे कार्य कर रहे हैं व उत्तर पदेश की योगी सरकार की नीतियो को नज़रअंदाज़ कर जनभावनाओ को कुचलने मे व्यस्त हैं।
उत्तर प्रदेश मे प्रशासनिक मकडजाल इतना गहराई तक फैला हुआ हैं की कोई भी विभाग शिकायतों पर कार्यवाही तो छोड़िये उत्तर भी नहीं दे रहा हैं जबकि यह लोक निवारण अधिनियम की नीतियो के खिलाफ हैं। जबकि नियमो के अनुसार शिकायत पर कार्यवाही के विषय मे शिकायतकर्ता को जानने का पूर्ण अधिकार हैं। अब प्रश्न यह हैं की क्या राज्य सरकार इन सभी विषयो पर ज़ीरो टोलरेंस कार्यवाही करेगी?