सुधीर पहाड़िया, वेव सिटी,
पीएम मोदी परीक्षा पर चर्चा के दौरान बच्चों के छह घंटे स्क्रीन टाइम पर चिंता जाहिर की। वहीं एम्स के डॉक्टर ने बच्चों में बढ़ते मायोपिया (दूर की चीजें साफ न दिखना) की एक वजह बढ़ता स्क्रीन टाइम बताया है। एम्स की गाइडलाइंस के अनुसार एक दिन में मैक्सिमम दो घंटे से ज्यादा स्क्रीन टाइम नहीं होना चाहिए। आई एक्सपर्ट का यह भी कहना है कि जितनी छोटी स्क्रीन होगी, उतनी समस्या बढ़ेगी, बड़ी स्क्रीन की जगह मोबाइल पर काम करना आंखों पर ज्यादा प्रेशर डालता है। एम्स के डॉक्टरों ने चेताते हुए कहा कि यही स्थिति रही तो 2050 तक 40 से 45 परसेंट बच्चे मायोपिया के शिकार हो जाएंगे। इसके लिए एम्स की गाइडलाइंस को फॉलो करना चाहिए।
एम्स के आरपी सेंटर के चीफ डॉ. जी. एस. तितियाल ने कहा कि 2015-16 तक स्कूली बच्चों में 10 से 12 परसेंट में मायोपिया होता था, लेकिन कोरोना के बाद बच्चों का डिजिटल टाइम काफी बढ़ गया है, इसकी वजह से अब इसमें भी इजाफा हो गया है। इस पर स्टडी जारी है, जिसमें कोविड से पहले, कोविड के दौरान और कोविड के बाद की स्थिति पर स्टडी हो रही है। डॉक्टर ने कहा कि मायोपिया में आंख की पुतली का साइज बढ़ जाता है और इसकी वजह से प्रतिबिंब रेटिना पर नहीं बनता है बल्कि इससे थोड़ा अलग हटकर बनता है। जिससे दूर की चीज धुंधली दिखती है, लेकिन पास की चीजें ठीक दिखती है।
बच्चों का स्क्रीन टाइम कई घंटे बढ़ा : सेंटर फॉर साइट के डायरेक्टर डॉ. महिपाल सचदेव ने कहा कि स्क्रीन टाइम बढ़ने से स्कूली बच्चों में मायोपिया तो बढ़ा ही है, उनके चश्मे का नंबर भी बढ़ रहा है। ओपीडी में भी ऐसे मरीजों की संख्या बढ़ी है। दिक्कत की बात यह है कि लोगों को स्क्रीन टाइम मैनेजमेंट पता नहीं है। लगातार छोटी स्क्रीन पर बच्चे काम करते रहते हैं, अपनी पढ़ाई करते हैं, गेम्स खेलते हैं और स्क्रीन टाइम कई घंटे का हो जाता है। उन्होंने कहा कि अब बच्चों में आउटडोर एक्टिविटी कम हो गई, धूप में कम जा रहे हैं।
बड़ी स्क्रीन पर काम करना ज्यादा बेहतर : डॉ. तितियाल ने कहा कि हमारी गाइडलाइंस के अनुसार 15 साल से कम उम्र के बच्चों के लिए दिन में दो घंटे से ज्यादा स्क्रीन टाइम नहीं होना चाहिए। हर 20 मिनट पर 20 सेकंड का ब्रेक लेना चाहिए और 20 मीटर दूर तक देखना चाहिए। इससे आंखों को रिलैक्स मिलता है और मसल्स पर जोर भी नहीं पड़ता। कमरे की लाइट बेहतर होना चाहिए। जहां पर बैठे हैं उसके पीछे से रोशनी आनी चाहिए न कि सामने से। पढ़ने के लिए टेबल और चेयर का इस्तेमाल करें, सोफा या पलंग पर बैठकर न पढ़े। पॉश्चर सही रहना चाहिए। बड़ी स्क्रीन बेहतर है क्योंकि इससे व्यक्ति की दूरी कम से कम 5 फीट से ज्यादा हो जाती है।
बढ़नी चाहिए आउटडोर एक्टिविटी : डॉ. तितियाल ने यह भी कहा कि स्कूल में एक पीरियड आउटडोर गेम्स जरूर होना चाहिए और घर पर भी रोजाना बच्चे के लिए एक घंटा आउटडोर होना चाहिए। वहीं स्कूलों को साल में एक बार सभी का विजन टेस्ट स्क्रीनिंग कराना चाहिए, क्योंकि टीचर को ज्यादा पता होता है कि किन बच्चों को देखने में कितनी दिक्कत हो रही है। जो बच्चे चश्मे का इस्तेमाल करते हैं, उनकी जांच एक साल में जरूर होनी चाहिए, क्योंकि नंबर बढ़ने का खतरा रहता है। टीचर और पैरंट्स की काउंसलिंग भी जरूरी है, ताकि वो इस परेशानी को समझें और इससे बचाव के तरीके पर ध्यान दें।
इन बातों पर ध्यान रखें
3 साल से पहले : कोई स्क्रीन टाइम नहीं
6 साल से पहले : इंटरनेट का प्रयोग नहीं
9 साल से पहले : विडियो गेम नहीं
12 साल से पहले : सोशल मीडिया का कोई प्रयोग नहीं
स्क्रीन टाइम ज्यादा होने पर असर
सबसे पहला असर बच्चों की आंखों की रोशनी पर पड़ रहा है
स्क्रीन को नजदीक और एकटक देखने से आंखें ड्राई होने लगती हैं
यही हालात रहने पर आंखों की रोशनी कम होने लगती है
छोटे बच्चों में स्पीच डिसऑर्डर या देर से बोलने की समस्या आती है
कैसे करें स्क्रीन का इस्तेमाल
घर में इलेक्ट्रॉनिक डिवाइस के प्रयोग के लिए एक टाइम फिक्स करें
इस पर बच्चों के साथ-साथ पैरंट्स को भी अमल करना चाहिए
बच्चों को फिजिकल एक्टिविटी के लिए प्रेरित करें
मोबाइल, टैबलेट या टीवी का प्रयोग किसी भी सूरत में देर रात तक बेडरूम में न करें
बच्चों के मोबाइल फोन रात होने पर अपने कमरे में ही रखें