विगत दिनों सभी को मालूम हैं की उत्तराखंड ने अब तक की सबसे बड़ी आपदा का दंश झेला हैं और हम उसकी सत्यता जांचकर भी आये हैं क्योकि भवाली से अल्मोड़ा तक सड़के नदियों में तब्दील हो चुकी हैं व कई जगह तो सड़के नदी में समा चुकी थी|
इस तरह की आपदा हमारे लिए भी नयी थी व हमने भी कुछ लोगो के साथ मिलकर लोगो को सहायता पहुचाने के अपनी और से प्रयास भी शुरू कर दिए थे व 26 अक्टूबर को हमने गरमपानी से आगे चमडिया स्थान पर 60 लोगो के राशन की व्यवस्था की ताकि उन लोगो को कुछ राहत मिल सके|
राहत सामग्री जो की 10 किलो आटा, 5 किलो चावल, 2 किलो मिक्स दाल, एक किलो चीनी, 1 किलो नमक, 200 ग्राम दूध पाउडर, 1 किलो तेल, हल्दी, मिर्चं धनिया, चायपत्ती इत्यादि का एक पैकेट बनाया व हल्द्वानी से खरीदकर चमडिया तक पहुचाया व हम लोग रात में ही गरमपानी पहुच गए थी ताकि स्थानीय लोगो को समय पर राहत सामग्री मिल सके व उन्हें हमारा इंतज़ार नहीं करना पड़े क्योकि हमने पहाड़ के हिसाब से सुबह 8 बजे राहत सामग्री बाटने का समय रखा था|
हम लोग 7 बजे ही नियत स्थान पर पहुच चुके थे व जल्दी जल्दी अपने नित्यकर्म से निपटकर 8 बजे से पहले ही बैठ गए ताकि जैसे जैसे लोग आते रहे हम उनके दस्तावेज देखकर उन्हें राहत किट प्रदान करते रहे|
हम 10 बजे तक उस स्थान पर बैठे रहे पर कोई नहीं आया, 10 बजे के बाद धीरे धीरे लोगो का आना शुरू हुआ| हमने सोचा था की लोगो के आधार कार्ड देखकर उन्हें हम हमारी राहत किट दे देंगे पर हम यह देखकर दंग रह गए की एक ही घर से 3 3 लोगइ किट लेने आये हैं| वो भी हमें तब पता लगा जब एक आवाज आई की “तीन तीन किट कसी लिजूल”. इतना सुनने के बाद हमने वो तीनो किटो को अपने पास रख लिया व उन्हें केवल राशन की एक ही किट दी व लोगो से कहा की आप राशन कार्ड लाये हम तभी आपको राशन दे पायेंगे|
चूँकि जड़ापानी, लोहाली, रेंगल व अन्य गावो की दूरी अच्छी खासी थी तो हमने उन्हें फ़ोन पर राशन कार्ड की कॉपी मंगाने को कहा व प्रक्रिया को कुछ समय के लिए रोक दिया ताकि लोगो कागजो की कॉपी मंगा सके| हम राशन कार्ड के साथ लोगो के आधार कार्ड भी चेक कर रहे थे|
कई लोगो के आधार कार्ड दिल्ली व गुजरात के थे तो हमने उन्हें हाथ जोड़ दिए व किट देने से मना कर दिया| ऐसे कई लोग थे जिहने देखकर लग रहा था की वो सक्षम है एक तो पूर्व प्रधान थी जिन्हें हमने मना किया तो वो लड़ने लगी पर हमने किसी की परवाह ना करते हुए केवल उन लोगो को ही राशन देने का प्रयास किया जो अक्षम लग रहे थे|
एक व्यक्ति तो शराब पीकर राशन लेने आया हुआ था जिसे की हमने मना कर दिया तो वो तो मरने मारने पर उतारू हो गया की मेरे घर वाले क्या खायेंगे?
इतना ही नहीं हमने जिन जिन लोगो को राशन की किट दी उसकी सारी जानकारी जिला प्रशासन को सोंप दी ताकि इन लोगो को दुबारा दुबारा राशन ना मिले व सही पात्र उससे लाभान्वित हो|
सुबह 10 बजे से दोपहर 2 बजे तक हमने कम से कम 150 लोगो से बात की व उनमे से जो 60 लोग सही लगे उन्हें ही हमने राशन दिया बाकी जिन्हें हमने राशन नहीं दिया वो हमें लोग गालिया दे रहे थे जो की हमारे लिए सामान्य बात थी| हमें गालियों से कोई दुःख नहीं था हमें यह देखकर दिक्कत हो रही थी पहाडियो की क्या दुर्दशा हो चुकी हैं लोग भूखे से ज्यादा नंगे हो रहे थे और यही हमारे पतन का कारण भी है|
अब प्रशन यह उठता हैं की क्या सही में पहाड़ में लोगो को आपदा राहत की जरूरत हैं? केवल कुछ लालची लोगो के कारण सही व्यक्ति तक राहत नहीं पहुच पा रही हैं| हमारा मानना हैं की सरकारी राशन/ योजनाओ ने पहाड़ को बर्बाद कर दिया हैं| पहले भी यही पहाड़ थे, लोग भी ठीक ठाक थे व सब अपने लिए अन्न का उत्पादन कर रहे थे तो क्या विकास व सरकारी योजनाओ ने हमें निकम्मा व लालची बना दिया हैं?
यह लेख लेखक के अपने अनुभव पर आधारित हैं व आपकी टिप्पणियों का स्वागत हैं|
लेखक :- जीवन पन्त
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