बात 23 फरवरी रविवार रात 11 बजे की हैं| एक उत्तर भारतीय लड़का जो बैंगलोर के व्हाइटफील्ड क्षेत्र में आंबेडकर नगर की 1B मेन के किसी PG में रहता हैं| वह सड़क पर मोबाइल पर बात करते हुए टहल रहा था व उसकी आवाज कोई ज्यादा नहीं थी लेकिन इस गली के अंत में रहने वाले सज्जन ने उन्हें इस बात के लिए जोर से डांठ दिया और बोला की यंहा ना आया करे|
लड़के को यह बात बुरी लगी तो उसने कारण पूछा क्योकि वो सरकारी सड़क पर घूम रहा हैं तो वह व्यक्ति उस लड़के पर चिल्लाने लगा उस लड़के ने इसका विरोध किया तो उस व्यक्ति के घरवाले उस लड़के को धमकाने लगे जो की महिलाए थी और उसे यंहा से चले जाने को बोलने लगी|
चुकी लड़का गलत नहीं था इसलिए उसने इस बात का विरोध किया तो वह सज्जन उसको मारने के लिए दोड़े तो परिवार वालो ने रोक लिया| इतनी सब बात होने पर उक्त सज्जन ने भी पुलिस बुला ली और आश्चार्य तो तब हुआ जब पुलिस वाले उस लड़के को ही धमकाने लगा| सज्जन व उसका परिवार जो अभी तक अंग्रेजी में बात कर रहा था वो अब क्षेत्रीय भाषा कन्नड़ में बात करने लगे जो की उस लड़के को नहीं आती था|
उस लड़के ने अपने फ़ोन पर रिकॉर्डिंग चालू कर रखी थी जिसके विषय में उक्त सज्जन ने पुलिस वालो को बताया तो पुलिस वाले ने जबरदस्ती उस लड़के के फ़ोन को छीन लिया| अब मोहल्ले के दो चार लोग और आ गए और उस लड़के पर दबाव बनाने लगे की यंहा ना आया करे| उस लड़के ने भी प्रश्न दाग दिया की क्यों? यह रोड सरकार की हैं और मैं कोई चोर उचक्का नहीं हूँ|
लड़का अकेला था तो पुलिस वाले उसपर दबाव बनने लगे की पुलिस स्टेशन चल जबकि उन्हें उक्त सज्जन को भी पुलिस स्टेशन ले जाना चाहिए था| पुलिस की यही प्रणाली उसे अपारदर्शी बनाती हैं| पुलिस को तटस्थ होकर न्याय के लिए कार्य करना चाहिए जो की उसने इस प्रकरण में नहीं किया|
प्रश्न यह उठता हैं की क्या उत्तर भारतीयो को बैंगलोर में रहने का हक़ नहीं हैं? अगर वो PG में रहता हैं तो क्या उसके अधिकार कम हो जाते हैं? क्यों क्षेत्रीय लोग लामबंद होकर उस लड़के को परेशान कर रहे थे? पुलिस व स्थानीय नागरिक क्यों आपस में कन्नड़ में बाते कर रहे थे?
क्यों पुलिस वालो ने उस लकड़े के साथ इस प्रकार का व्यवहार किया व उसका फोन छीना? यह सब बाते इसी बात का इशारा करती हैं की बैंगलोर में उत्तर भारतीयों के साथ सोतेला व्यवहार हो रहां हैं जो की संविधान की भावनाओ के बिलकुल विपरीत हैं|