जबसे उत्तराखंड बना हैं राज्य में अस्थिरता बनी रही हैं व् कालांतर में कोई भी मुख्यमंत्री नारायणदत तिवारी को छोड़कर अपना कार्यकाल पूरा नहीं कर पाया हैं| उत्तराखंड में भाजपा को तीन साल हो चुके हैं लेंकिन उपलब्धियों के नाम पर त्रिवेन्द्र सिंह रावत के हाथ अभी तक खाली है| राज्य में चिकित्सा स्वास्थ व शिक्षा का हाल इतना बुरा हैं की राज्य हर साल निति आयोग की सूची में पिछड़ता ही जा रहा हैं व आजकल तो हालत यह है की पहाड़ी राज्यों में भी इन दोनों पैमानों में राज्य सबसे पिछड़ा हुआ हैं|
आजकल राज्य देहरादून नहीं नैनीताल से चलता हैं क्योकि सरकार ने जितने भी फैसले लिए उन सभी फैसलों को कोर्ट में चुनोती दी गयी है व अधिकतर मामलो में सरकार की खूब किरकिरी हुई हैं और सबसे मजेदार बात तो यह हैं की मुख्यमंत्री रावत जिस ढेंचा बीच प्रकरण में दोषी हैं उस केस की तारीखों का किसी को कोई अता पता नहीं हैं जबकि जांच आयोग ने वर्तमान मुख्यमंत्री के ऊपर सीधा सीधा आरोप लगाया था| मुख्यमंत्री कार्यालय के बारे में भी सही जानकारी नहीं आ रही है वो भी जीरो टॉलरेंस के नाम पर बट्टा लगाने में अन्य विभागों से पीछे नहीं है |
राज्य में चारो और कुव्यवस्था ही कुव्यवस्था है व सरकार की खरीद निति ही सबसे बड़ा झोल है व उसका सबसे बड़ा उदहारण बसों की खरीद रहा हैं| सरकार ने जो 150 बसे टाटा से खरीदी थी एक तो वो भारत स्टेज 4 की थी व रोज नयी बसों के गेयर या तो अटक जा रहे थे या टूट रहे थे लेकिन परिवहन विभाग के लोगो पर दबाव था की कैसे भी करके इन बसों को चलाओ लेकिन जब दिक्कत ज्यादा होने लग गयी व संगठनो ने सरकार को दो टूक जवाब दे दिया तब जाकर सरकार ने बसों को ठीक कराने की बात मानी लेकिन ठीक होने के बाद भी स्थिति में ज्यादा सुधार नहीं आया हैं|
राज्य में चिकित्सा व्यवस्था जो की मुख्यमंत्री का विभाग हैं खुद मरने के कगार पर है| हालत यह हैं की मुख्यमंत्री की प्रिय कंपनी ने आते ही खुशियों की सवारी जो की खंडूरी की योजना थी उससे पल्ला झाड लिया व आज हालत यह हैं की क़ब 108 उत्त्तराखंड में बंद हो जाए किसी को नहीं पता क्योकि महीनो से 108 के कर्मचारियों को वेतन नहीं मिला हैं| सभी जिला अस्पताल आजकल रेफरेल सेण्टर बने हुए हैं और जब सरकार ने दबाव डाला की आप मरीज को रेफेर नहीं करोगे तो जच्चा बच्चा की मौतों की संख्या में बेहिसाब बढ़ोतरी हो गयी क्योकि जिला अस्पतालों में संसाधनों का अभाव हैं|
आजकल मुख्यमंत्री रावत के जाने और सतपाल महाराज के आने की चर्चा जोरो पर हैं त्रिवेन्द्र कितना भी कह ले लेकिन सच्चाई यही हैं की हाई कमान त्रिवेन्द्र सिंह रावत को हटाने का पूरा मन बना चुका हैं क्योकि राज्य में त्रिवेन्द्र के कारण बीजेपी की साख गिरी हैं इसलिए निशंक केंद्र की राजनीति छोड़ राज्य में नहीं आना चाहते हैं इसलिए महाराज के पास यह मौक़ा आ गया हैं की अपनी दावेदारी प्रस्तुत करे| लेकिन महाराज का कांग्रेस से आना बीजेपी के आलाकमान को खटक रहा हैं क्योकि इससे उसका पाना काडर बिदक सकता हैं व लेने की बजाय देना भी पड सकता हैं|
महाराज आजकल संघ के लोगो को साधने में लगे हुए हैं ताकि उनकी दावेदारी में कोई भी अड़चन ना आये व उन्होंने संघ के कई कार्यकर्मो में भरपूर सहयोग भी किया हैं| लेकिन बीजेपी महाराज की दावेदारी को नकार भी नहीं पा रही हैं|
त्रिवेन्द्र सिंह रावत की किस्मत हर बार उनका साथ देती रही हैं क्योकि जब बलूनी को मुख्यमंत्री बनाने की सुगबुगाहट शुरू हुई तो उन्हें आलाकमान को साधकर बलूनी को राज्यसभा में भेज दिया व अपनी कुर्सी बचा ली व आज जब आलाकमान इस विषय में गंभीर हैं तो बलूनी का स्वास्थ उन्हें किसी इजाजत नहीं देता| बलूनी का स्वास्थ व महाराज का कांग्रेसी होना त्रिवेन्द्र सिंह रावत के विश्वास को और बल देता हैं|
बीजेपी को उत्तराखंड में सत्ता के केंद्र तो बदलना ही पड़ेगा नहीं तो वो त्रिवेन्द्र सिंह रावत के कारण उत्तराखंड में जड़ निर्मूल हो जायेगी व इस समय बीजेपी के पास धनसिंह रावत से बढ़िया कोई भी व्यक्ति नहीं हैं जो राज्य के विकास व बीजेपी के विश्वास को गति दे सके और यदि बीजेपी अध्यक्ष जे पी नड्डा महाराज को मुख्यमंत्री बनाते हैं तो ना केवल बीजेपी के अपने लोग उससे दूर हो जायेगे लोग भी बीजेपी से किनारा कर लेंगे|