एक बार दिल्ली से बाहर चले जाओ तो स्वाद व जायका पूरी तरह बदल जाता हैं और अगर दिल्ली वाला कोई दक्षिण भारत की और चला जाए तो उसे दिल्ली वाला जायका मिल जाए वो तो संभव ही नहीं है और स्वाद के लिए हर जगह का खाना खाना भी संभव नहीं हो पाता|
लेकिन इस बार तो सच में चमत्कार ही हो गया था क्योकि 2010 व 2012 में मेरी बंगलुरु की यात्रा के दौरान खाने के लिए मैं कंहा कंहा नहीं भटका लेकिन जो स्वाद में ढूंढ रहा था वो मिल ही नहीं पाया था|
इस बार बंगलुरु में वाइटफ़ील्ड की यात्रा के दौरान मैं कंही पैदल ही जा रहा था और मेरे आगे 4 लड़के व लडकिया चल रहे थे व 2 किलोमीटर चलने के बाद वो लोग एक होटल में चले गए| मुझे भी थोड़ी भूख लगी थी और जब देखा की यह लोग इतनी दूर यंहा पर आये हैं तो कुछ ख़ास ही होगा|
अन्दर जाकर देखा तो उस रेस्तरा को एक ढाबे जैसा लुक देने की कोशिश की गयी थी व् उसका नाम भी “नान स्टॉप” व 15 से 20 के आसपास टेबले करीने से लगी हुई थी| क्योकि ढाबे/रेस्तरा का नाम नान स्टॉप था तो मुझे लगा की यंहा तरह तरह के नान खाने को मिलेंगे|
हम भी नान खाने के लिए बैठ गए और जब मेनू देखा तो वही सब खाना था जो अन्य ढाबो या रेस्तरा में मिल जाता हैं व तभी वेटर ने बताया की हमारे यंहा बुफ्फे व्यवस्था भी है और उसका मूल्य अभी 175 रुपया मात्र था| मैंने भी बुफ्फे लेना ही श्रेयकर समझा|
एक थाली उठाकर जब मैंने खाना लेना शुरू किया तो उसमे सूप, सलाद, मिक्स वेज, दाल मखनी, तडका दाल, मिक्स वेज पुलाव, चावल, शाही पनीर, दही, मिक्स रायता, अचार व मीठे में गुलाब जामुन रखे हुए थे| मैंने भी अनमने मन से थोडा थोड़ा ले लिए क्योकि पूर्व का अनुभव आज भी मेरे दिमाग पर यथावत था|
खाने लेने के दौरान देखा की सब चीज़े बड़े करीने से लगाईं गयी हैं व दाल तडका लेने के दौरा हींग, जीरे व लहसुन के तडके ने हमारे घर में बनने वाली दाल की याद दिला दी| फिर भी एहतियातन मैंने सारा सामान थोडा थोड़ा ही लिया व उसके बाद पानी सीट पर आकर बैठ गया तो वेटर ने आकर पूछा की आप रोटी लोगे या नान| यह थोडा आश्चर्यजनक था क्योकि मैं सोच चुका था की आज चावल से ही पेट भरना पड़ेगा और इसी लिए दो तरह के चावल वंहा रखे गए हैं|
सुरक्षा की दृष्टि से मैंने भी 1 ही रोटी मांगी क्योकि डर अभी भी मन में ही था और थोड़ी देर में रोटी आ गयी और मैंने अब श्री गणेश करना उचित समझा व शुरुआत उस तकड़े वाली दाल से की और जब उस दाल ने जैसे ही जीभ को स्पर्श किया तो ऐसा लगा की मैं टिपिकल ढाबे की तडके वाली दाल को खा रहा हूँ|
उसके बाद तो मैंने एक एक सब्जी जो मैं लेकर आया था चखने लगा सब की सब एक से बढ़कर एक थी और पुलाव तो लाजवाब था उसके बाद तो मेरे हाथ तो ऐसे चलने लगे जैसे की मशीन हो| ऐसा खाना, बंगलुरु, में गजब मैं 4 बार खाना लेने गया और जब तक आत्मा तृप्त नहीं हुई तबतक खाता गया|
खाना खाने के बाद मेरे दिमाग में इस जगह के बारे में और जानने के लिए खलबली शुरू हो गयी तो पता चला की यह ढाबा/ रेस्तरा एक बार चेन वालो का है व इस पूरे ढाबे की व्यवस्था श्री महेंद्र जी देखते है जो की मूलतः नेपाली लेकिन परिवार के लोग 1930 से भारत में आकर बस गए थे व महेंद्र भाई 11 वर्ष में ही बंगलुरु आ गए थे|
हमारी बातचीत का सिलसिला बढ़ता ही गया और बातो ही बातो में उन्होंने बताया की इस रेस्तरा की शुरुआत 1 महीना पहले ही हुई हैं व शाम के समय लोग परिवार के साथ आते हैं और बैठने की जगह नहीं मिलती है|
महेंद्र भाई भी बड़े ही सरल व मिलनसार व्यक्ति हैं व बात करते करते क़ब समय बीत गया पता ही नहीं चला| क्योकि आज कंही मीटिंग थी इसलिए मै बाद में आने को कहकर उनसे अनुमति मांगी और अपने गंतव्य की और चल दिया|
सच में जैसा खाना आज बंगलुरु में नान स्टॉप में खाने को मिला वैसा तो उत्तर भारत में भी खाने को नहीं मिलता| महेंद्र भाई से बातो ही बातो में पता चला की उनके रसोई में खाना बनाने वाले अधिकतर उत्तर भारत से हैं व उसमे भी अधिकतर कर्मचारी उत्तराखंड से हैं और यह स्वाद उन्ही के हाथो का कमाल हैं|
इतना सब कह दिया लेकिन आप लोगो के साथ उनका पता बाटना तो भूल ही गया| उनका पता हिं नान stop , रोड no 2,EPIP जोन, वाइटफ़ील्ड मेन रोड, बंगलुरु व आप फ़ोन करके अपने लिए सीट रिजर्व भी करा सकते हैं|