ऐतिहासिक घाटे से जूझ रही टेलिकॉम कंपनी वोडाफोन आइडिया की AGR (एडजस्टेड ग्रॉस रेवेन्यू) संबंधी 44,200 करोड़ रुपये की देनदारी में और बढ़ोतरी हो सकती है, जिससे कंपनी को अतिरिक्त प्रोविजनिंग करनी पड़ेगी और उसकी बैलेंस शीट पर दबाव बढ़ेगा।
टेलिकॉम डिपार्टमेंट के ऐसी देनदारी की गणना के लिए इस्तेमाल किए जाने वाले मेथड के आधार पर मार्केट एनालिस्टों ने यह बात कही है। अगर ऐसा होता है तो पहले से ही मुश्किल में फंसी कंपनी पर ताला लग सकता है।
ICICI सिक्यॉरिटीज ने बताया कि पिछले शुक्रवार को वोडाफोन आइडिया ने एनालिस्ट कॉल में ब्याज और जुर्माने के साथ AGR संबंधित 44,200 करोड़ रुपये की देनदारी का अनुमान दिया था। यह अनुमान 18 प्रतिशत और 12.5 प्रतिशत के डिफरेंशल रेट्स पर आधारित था।
अगर यह गणना किसी और तरीके से की जाए तो AGR संबंधी देनदारी में अच्छी-खासी बढ़ोतरी हो सकती है। ब्रोकरेज फर्म ने बताया कि वोडाफोन आइडिया ने टेलिकॉम डिपार्टमेंट से मिले नोटिस के आधार पर AGR की मूल रकम के 11,100 करोड़ रुपये होने का अनुमान लगाया है। वहीं, पिछले 2-3 साल का अनुमान कंपनी ने खुद लगाया है।
कंपनी को सितंबर तिमाही में 50,921.9 करोड़ रुपये का बड़ा घाटा हुआ है और उसने लाइसेंस फीस, स्पेक्ट्रम यूसेज चार्ज, इंट्रेस्ट और पेनल्टी सहित 44,200 करोड़ रुपये के AGR का अनुमान लगाया है। सुप्रीम कोर्ट के निर्देश के मुताबिक, उसे तीन महीने के अंदर इस रकम का भुगतान करना है।
ब्रोकरेज फर्म क्रेडिट सुइस ने बताया कि वोडाफोन आइडिया की AGR संबंधी देनदारी 54,200 करोड़ रुपये रह सकती है। यह अंदाजा उसने टेलिकॉम डिपार्टमेंट के अंदरूनी अनुमान के आधार पर लगाया है। क्रेडिट सुइस का कहना है कि ऐसे में टेलीकॉम कंपनी को 10,100 करोड़ रुपये की अतिरिक्त प्रोविजनिंग AGR के लिए करनी पड़ेगी।
एनालिस्टों का कहना है कि इस वजह से कंपनी के भविष्य पर सवालिया निशान लग गया है। उन्होंने बताया कि अगर इस मामले में सरकार से बड़ी मदद नहीं मिली तो वोडाफोन आइडिया को फिर से इक्विटी बेचकर बड़ी रकम जुटानी पड़ेगी।
उसकी वजह यह है कि प्री-मर्जर कंटिंजेंट लायबिलिटी सेटलमेंट के तहत कंपनी वोडाफोन ग्रुप पीएलसी से 8,370 करोड़ रुपये ही हासिल कर सकती है। इसलिए उसे 35,830 करोड़ रुपये के बाकी के AGR का बोझ खुद उठाना पड़ेगा।
विश्लेषकों के मुताबिक, यह इतना आसान नहीं है। उन्होंने याद दिलाया कि ब्रिटेन के वोडाफोन ग्रुप ने पहले ही स्पष्ट कर दिया है कि वह भारतीय बिजनस में एक रुपये का भी निवेश नहीं करेगा। वहीं, आदित्य बिड़ला ग्रुप की भी टेलिकॉम जॉइंट वेंचर में निवेश करने में दिलचस्पी नहीं है। ऐसे में अगर सरकार से मदद नहीं मिलती तो दोनों ही प्रमोटर कंपनी को दिवालिया होने देंगे।