सुप्रीम कोर्ट के पांच जजों की बेंच ने अयोध्या विवाद में ऐतिहासिक फैसला सुना दिया है। सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले का देश के सभी लोगों ने स्वागत किया है। राजनीतिक दलों समेत इस मामले से जुड़े पक्षों ने भी सुप्रीम कोर्ट के फैसले को स्वागत योग्य बताया है। आइए जानते हैं फैसले से जुड़ी 10 बातें
- सुप्रीम कोर्ट ने 2.77 एकड़ की पूरी विवादित जमीन मंदिर बनाने के लिए दे दी है।
- सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र से कहा है कि वह मंदिर निर्माण के लिए एक ट्रस्ट बनाए।
- सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र से कहा है कि वह तीन महीने के भीतर एक योजना बनाएं, जिसके मुताबिक, बोर्ड ऑफ ट्रस्टी तय किए जाएंगे। ये लोग ही मंदिर निर्माण का काम-काज देखेंगे।
- सुप्रीम कोर्ट ने अयोध्या में ही मस्जिद बनाने के लिए 5 एकड़ा जमीन देने को कहा। यह जमीन सुन्नी वक्फ बोर्ड को दी जाएगी।
- सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि 2010 का इलाहाबाद हाई कोर्ट का फैसला अतार्किक था। इलाहाबाद हाई कोर्ट ने विवादित भूमि को तीन हिस्सों में बांट दिया था, जिसमें एक निर्मोही अखाड़े को, दूसरा राम जन्मभूमि न्यास को और तीसरा सुन्नी वक्फ बोर्ड को दिया जाना था।
- सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि निर्मोही अखाड़े का दावा बेबुनियाद है। हालांकि कोर्ट ने केंद्र से कहा है कि सरकार द्वारा बनाई जाने वाली कमिटी में निर्मोही अखाड़े के प्रतिनिधि को भी जगह दी जाए।
- सुन्नी वक्फ बोर्ड के खिलाफ शिया वक्फ बोर्ड के दावे को सुप्रीम कोर्ट ने सिरे से खारिज कर दिया।
- सुप्रीम कोर्ट का ट्रस्ट बनाने का फैसला एक तरह से वीएचपी समर्थित राम जन्मस्थान न्यास को मंदिर निर्माण के मामलों से बाहर करता है।
- सुप्रीम कोर्ट ने फैसला पढ़ते हुए कहा कि पुरातत्व विभाग के सबूतों को नकारा नहीं जा सकता है। एएसआई की रिपोर्ट इस तरफ इशारा करती है कि बाबरी मस्जिद किसी खाली पड़ी जमीन पर नहीं बनाई गई थी। बल्कि यह एक हिंदू ढांचे के स्थान पर बनाई गई थी। हालांकि एएसआई की रिपोर्ट में इस बात का जिक्र नहीं किया गया है कि मस्जिद बनाने के लिए मंदिर तोड़ा गया था या नहीं।
- कोर्ट ने कहा कि 1992 में बाबरी मस्जिद को सुप्रीम कोर्ट के फैसले के खिलाफ बनाया गया था। 1949 में मस्जिद की जगह मूर्तियां रखा जाना और बाद में मस्जिद का विध्वंस भी कानून के खिलाफ था।
सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड ने किया स्वागत
यूपी सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड ने अयोध्या केस पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले का स्वागत किया। राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद विवाद के पक्षकार रहे यूपी सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड ने कहा कि वह इस फैसले पर पुनर्विचार याचिका दाखिल नहीं करेगा। बोर्ड के अध्यक्ष जुफर फारूकी ने कहा कि वह न्यायालय के निर्णय का स्वागत करते हैं और बोर्ड का इस फैसले को चुनौती देने का कोई विचार नहीं है।
फ़ारूक़ी ने कहा कि 5 एकड़ जमीन लेने को लेकर बोर्ड के मेंबर के साथ बातचीत के बाद फैसला लिया जाएगा। उन्होंने साफ कहा, ‘हमें सुप्रीम कोर्ट का फैसला मान्य है। फैसले से पहले सभी का कहना था कि कोर्ट का फैसला मान्य होगा। इसलिए अब अगर कोई रिव्यु पेटिशन की बात करता है तो यह गलत होगा।’
दिल्ली में जामा मस्जिद के शाही इमाम सैयद अहमद बुखारी ने कहा, ‘हम हमेशा से कहते रहे हैं कि हम सुप्रीम कोर्ट के फैसले को स्वीकार करेंगे। मुझे विश्वास है कि देश अब विकास की ओर बढ़ेगा। जहां तक रिव्यू पिटिशन दाखिल करने की बात है तो मैं इससे सहमत नहीं हूं।
शिया धर्मगुरु मौलाना कल्बे जवाद ने भी सुप्रीम कोर्ट के फैसले का स्वागत किया है। उन्होंने कहा, ‘हम विनम्रतापूर्वक सुप्रीम कोर्ट के फैसले को स्वीकार करते हैं, मैं भगवान का शुक्रगुजार हूं कि मुसलमानों ने और बड़े लोगों ने इस फैसले को स्वीकार किया और विवाद अब समाप्त हो गया है। हालांकि फैसले पर रिव्यु पेटिशन उनका (मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड) अधिकार है, मुझे लगता है कि मामला अब खत्म होना चाहिए।’
आपको बता दें कि राजनीतिक रूप से संवेदनशील राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद विवाद पर सुप्रीम कोर्ट के पांच जजों की पीठ ने सर्वसम्मति यानी 5-0 से ऐतिहासिक फैसला सुनाया। निर्मोही अखाड़े के दावे को खारिज करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने रामलला विराजमान और सुन्नी वक्फ बोर्ड को ही पक्षकार माना। टॉप कोर्ट ने इलाहाबाद हाई कोर्ट द्वारा विवादित जमीन को तीन पक्षों में बांटने के फैसले को अतार्किक करार दिया। आखिर में सुप्रीम कोर्ट ने रामलला विराजमान के पक्ष में फैसला सुनाया।
कोर्ट ने साथ में यह भी आदेश दिया कि सुन्नी वक्फ बोर्ड को अयोध्या में ही कहीं और 5 एकड़ जमीन दी जाए। कोर्ट ने केंद्र सरकार को आदेश दिया है कि वह मंदिर निर्माण के लिए 3 महीने में ट्रस्ट बनाए। इस ट्रस्ट में निर्मोही अखाड़े को भी प्रतिनिधित्व देने को कहा है।
उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्य नाथ ने अपने ब्लॉग में लिखा हैं ‘जब मैंने मुख्यमंत्री के रूप में दायित्व संभाला तब वर्षों से तुष्टीकरण की राजनीति के कारण सत्ता के लिए अछूत बनी अयोध्या की उपेक्षा की पीड़ा मेरे मन में बसी हुई थी। मैंने सत्ता संभालते ही यह संकल्प लिया कि अयोध्या में विकास और विश्वास की फिर से बहाली करना और प्रभु श्री राम की जन्मभूमि के उद्धार हेतु कानूनी तरीके से प्रयत्नशील रहना मेरी प्राथमिकताओं में से एक है। इसी कारण मेरी सरकार ने अयोध्या में भव्य दीपोत्सव की शुरुआत की।’