अगर इरादा नेक हो, दिल में जज्बा हो और मेहनत ही योग्यता हो तो कोई भी उच्चाई छुई जा सकती हैं हम ऐसे ही नहीं बोल रहे हैं क्योकि कई शक्श ऐसे हैं जिन्होंने अपने लगन व दृढ इच्छाशक्ति एक ऐसा एम्पायर व परिवार को खडा किया हैं जो आज भारतीयों के साथ साथ विदेशियों की जुबान पर भी चढ़ा हुआ हैं| यह प्रतिष्ठान आज भारत के साथ साथ विदेशो में भी अपने स्वाद व गुणवत्ता के लिए प्रसिद्ध हैं| जी हाँ हम बात कर रहे हैं प्रसिद्ध बीकानेरवाला की जिसके उत्पाद आज घर घर की पहचान बन चुके हैं|
बीकानेरवाला की शुरआत बहुत ही साधारण तरीके से हुई थी जब केदारनाथ 1955 में राजस्थान के बीकानेर से अपने बड़े भाई सत्यनारायण अग्रवाल के साथ दिल्ली आए थे और बस दिल्ली के होकर रह गए और आज अग्रवाल परिवार में 130 सदस्य हैं और सारे एक ही पारिवारिक कारोबार में… सुनने में हैरानी होती है लेकिन यह सच है। और इतने बड़े परिवार को एक साथ बांधने का जिम्मा उठा रखा है काका जी के नाम से मशहूर 83 साल के लाला केदारनाथ अग्रवाल ने। केदारनाथ जी ही मशहूर मिठाई और रेस्तरां चेन ‘बीकानेरवाला’ के मुखिया हैं।
केदारनाथ जी बताते हैं की जब हम दिल्ली आये थे तो पुरानी दिल्ली में हम दोनों भाई संतलाल खेमका धर्मशाला में रुके थे। उस वक्त सिर्फ तीन दिनों के लिए ही धर्मशाला में ठहरा जा सकता था। लेकिन हम बीकानेर से एक जानकार की एक महीने तक धर्मशाला में रुकने की सिफारिशी चिट्ठी लिखवाकर लाए थे। शुरुआत में हम दोनों भाइयों ने बाल्टी में भरकर बीकानेरी रसगुल्ले और कागज की पुड़िया में बांध-बांधकर बीकानेरी भुजिया और नमकीन बेची और जल्द ही पूरानी दिल्ली में हमारे बनाए उत्पादों की माग बढ़ने लगी तो हमने परांठे वाली गली में एक दुकान किराये पर ले ली और कुछ कारीगर भी बीकानेर से बुलवा लिए। कुछ दिनों बाद ही नयी सड़क में एक छोटी सी जगह पर हमने मूंग की दाल का हलवा बनाना शुरू किया और जल्द ही हलवा पुरानी दिल्ली में प्रसिद्ध हो गया क्योकि दिल्ली वाली ने पहली बार मूंग की दाल का हलवा चखा था|
शुद्ध देसी घी से बने इस हलवे को लोगों ने खूब पसंद किया। फिर मोती बाजार, चांदनी चौक में ही एक दुकान किराए पर मिल गई। उसी वक्त दिवाली आ गई और हमारी मिठाई और नमकीन की खूब सेल हुई। हालत यह हो गई थी कि रसगुल्लों की तो हमें राशनिंग यानी लिमिट तक तय करनी पड़ी। एक बार में एक शख्स को 10 से ज्यादा रसगुल्ले नहीं बेचे जाते थे। ग्राहकों की लाइनें लग जाती थीं।
इस प्रकार से बीकानेरवाला की शरुआत हुई थी व शुरुआत में हमारा ट्रेड मार्क था BBB यानी बीकानेरी भुजिया भंडार। लेकिन कुछ ही दिनों बाद सबसे बड़े भाई जुगल किशोर अग्रवाल दिल्ली आए तो उन्होंने कहा कि यह क्या नाम रखा है। हमने तो तुम्हें यहां बीकानेर का नाम रोशन करने के लिए भेजा था। इसके बाद नाम रखा गया ‘बीकानेरवाला’ और 1956 से आज तक ‘बीकानेरवाला’ ही ट्रेड मार्क बना हुआ है।’ काका जी के परिवार में तीन बेटे और तीन बेटियां हैं। सब शादीशुदा हैं और सबके बच्चे हैं। बेटों में सबसे बड़े राधेमोहन अग्रवाल (59), दूसरे नंबर पर नवरत्न अग्रवाल (55) और तीसरे नंबर पर रमेश अग्रवाल (52) हैं।
केदारनाथ जी के सभी बच्चे इसी बिजनस में लगे हुए हैं। दिल्ली में नई सड़क से शुरू किया नया काम ‘बीकानेरवाला’ का दिल्ली में सबसे पहला ठिकाना 1956 में नई सड़क था उसके बाद 1962 में मोती बाजार में एक दुकान खरीदी। इसके बाद करोल बाग में 1972-73 में वह दुकान खरीदी, जो अब देश-दुनिया में बीकानेरवाला की सबसे पुरानी दुकान के रूप में पहचानी जाती है। काका जी बताते हैं कि जब वे लोग चांदनी चौक में रहते थे, तब उन्होंने एम्बैसेडर कार खरीदी थी। पूरी पुरानी दिल्ली में इक्का-दुक्का लोगों के पास ही कारें थी। इसके बाद जब फिएट का जमाना आया तो यह कार ली। यानी वक्त के साथ कदमताल करने की कोशिश की। परिवार को घूमने का भी खूब शौक है।
नवरत्न अग्रवाल बताते हैं कि वह पूरी दुनिया घूम चुके हैं। वैसे, परिवार में हर बड़ा फैसला पिताजी यानी काका जी के ग्रीन सिग्नल मिलने के बाद ही लिया जाता है। आज बीकानो के 200 से ज्यादा आउटलेट्स आज देश और दुनिया में ‘बीकानेरवाला’ और ‘बीकानो’ के नाम से 200 से ज्यादा आउटलेट हैं। अमेरिका, दुबई, न्यू जीलैंड, सिंगापुर, नेपाल आदि देशों में भी ‘बीकानेरवाला’ पहुंच गया है। काका जी बताते हैं कि आज दो हजार करोड़ रुपये से ज्यादा का टर्नओवर है।
आज 130 लोगों का हमारा यह परिवार करोल बाग, पंजाबी बाग, राजौरी गार्डन, पीतमपुरा, हैदराबाद, अहमदाबाद और दुबई में घर बनाकर रहता है। लेकिन परिवार की खास बात यह है कि हर साल होली सभी एक साथ ही जीटी करनाल वाले फार्म हाउस में मनाते हैं जहां परिवार के तमाम लोग जमकर गुलाल और रंग खेलते हैं। घर में नौकरों की पूरी पलटन है लेकिन केदारनाथ जी सादगी से जिंदगी जीना पसंद करते है और अपने सारे काम आज भी स्वय करते हैं|