शनिवार सुबह जब चंद्रयान के एक हिस्सा जो की विक्रम व प्रज्ञान थे जिसे चाँद के दक्षिणी व सबसे जटिल हिस्से पर उतरना था जो की अभी तक रहस्य ही बना हुआ हैं और अभी तक किसी भी देश की पहुच से बहुत दूर था उस हिस्से में 2 किलोमीटर पहले ही पथ से भटककर गायब हो गया| इसरो की असंख्य कोशिशो के बाद भी उससे संपर्क नहीं हो पाया| इससे देश ही नहीं विदेश के करोडो लोगो को मायूसी का सामना करना पड़ा|
ऐसा नहीं हैं की केवल विक्रम व प्रज्ञान ही चंद्रयान का हिस्सा थे| यह तो केवल चाँद की भूमिगत प्रयोग का हिस्सा थे जो की विफल हो गए लेकिन हम भूल गए की चंद्रयान का ऑर्बिटर जिससे प्रज्ञान व विक्रम चाँद का अभिवादन करने निकले थे प्रयोग का केवल 5% हिस्से को ही प्रतिनिधित्व कर रहे थे बाकी के 95% हिस्से का प्रतिनिधित्व व जिम्मेवारी ऑर्बिटर की थी जो चाँद की कक्षा में अच्छे से स्थापित किया जा चुका हैं व अगले साढ़े 7 साल तक चाँद का गहन अध्यन कर हमारे ज्ञान को बढाता रहेगा|
विज्ञान में असफलता का कोई महत्त्व नहीं होता क्योकि असफलता अनुभव का एक जरिया हैं जो आने वाली पीढ़ी को बताती हैं की इस मार्ग पर जाकर यह परिणाम मिलेगा इसलिए नौसखियो व प्रयोगशाला में केवल स्थापित मापदंडो में प्रयोगों पर ध्यान दिया जाता हैं| यही कारण हैं की हम विज्ञान में दोनों दिन और तेजी से विकास की और बढ़ रहे हैं और चंद्रयान का प्रयोग भी इसी प्रयोगों का एक हिस्सा था|
क्योकि यंहा मार्ग, चुनोतिया व लक्ष्य का कुछ पता नहीं हैं केवल और केवल आकड़ो के आधार पर हमारे वैज्ञानिको ने इस जटिल चुनोती को स्वीकारा और परिक्षण के लिए अपनी साख, सुख व ज्ञान को परिणाम के लिया झोक दिया| उन्हें मालूम था की इसमें सफलता की गुंजाईश 50% से भी कम हैं लेकिन उनके हिसाब से 50% तो हैं| इतना ही हमारी प्रेरणा जगाने के लिए काफी हैं|
आज हर एक भारतीय प्रज्ञान व विक्रम के खोने के बाद ऐसा महसूस कर रहा हैं की जैसे परिवार का कोई सदस्य बिछुड़ गया हैं जबकि इस प्रयोग में हमारी कोई हिस्सेदारी नहीं थी| लेकिन हम लोग कुछ चीजों को अपनी भावनाओ से इतना जोड़ लेते हैं की अपने व दूसरो में कोई फर्क ही नहीं रह जाता| यही कारण हैं की प्रधानमन्त्री नरेन्द्र मोदी स्वय इस पल को जीने के लिए इसरो के मुख्यालय में 70 नन्हे वैज्ञानिको के साथ मौजूद थे| क्योकि वो इस पल को आत्मसात कर लेना चाहते थे| अगर वो चाहते तो इसका सीधा प्रसारण प्रधानमंत्री कार्यालय से भी देख सकते थे लेकिन यह उनका बड़प्पन ही हैं जो वह वैज्ञानिको का हौसलाफजाई के लिए मुख्यालय में दो बार गए|
आज यह पल उत्साह का हैं की आज हमारा यान चन्द्रमा के उस हिस्से पर पहुचा हैं जन्हा तक किसी देश ने जाने की सोची भी नहीं| यह अलग बात हैं की हमारा उससे संपर्क नहीं हैं लेकिन आशा है की वो अधूरा ही सही लेकिन भारत की पताका से हमें गौरान्वित कर रहा होगा की यह पहला यान हैं जिसने चन्द्रमा के दक्षिणी व रहस्यमयी हिस्से पर उतरकर हमारी उपस्थिति दर्ज करवाई हैं|
आज चन्द्रमा पर उतरे विक्रम व प्रज्ञान से हमारा संपर्क टूटा हैं| हमारा संकल्प नहीं व आज भारतीय वायु सेना अपने लडको को 2022 में जाने वाले गगनयान के लिए तैयार कर रही हैं अबतक 21 लोगो का चयन हो चुका हैं व उसमे से केवल 3 लोग ही इस यात्रा में जायेंगे| यह हमारा संकल्प व विश्वास ही हैं की हम असफलता को एक चुनोती की तरह मानते हैं जो की प्रयोगों का हिस्सा मात्र भर हैं|