विश्व स्वास्थ्य संगठन ने गत सप्ताह अपनी पहली वर्ल्ड विजन रिपोर्ट जारी की है। इस रिपोर्ट में दुनियाभर में आंखों की बीमारियों और उनसे निपटने के उपायों के बारे में चर्चा की गई है। नेत्र रोग दुनियाभर में तेजी से बढ़ रहे हैं। खासकर ग्रामीण समुदाय, कम आय वाले देश और अधिक उम्र के लोगों को ये अपनी चपेट में अधिक ले रहे हैं। डब्ल्यूएचओ की रिपोर्ट के मुताबिक, दुनियाभर में करीब 2.2 अरब लोग नेत्र रोगों से पीड़ित हैं। बढ़ती आबादी, बदलती जीवनशैली और आंखों की देखभाल करने के सीमित संसाधन बढ़ते नेत्र रोगों के प्रमुख कारण हैं।
रिपोर्ट में पाया गया हैं कि विश्वस्तर पर 2.2 अरब से अधिक लोगों में दृष्टि दोष है। इसके साथ ही इन 2.2 अरब लोगों में एक अरब लोग ऐसे नेत्र दोष से पीड़ित हैं, जिनका इलाज किया जा सकता है। इन एक अरब लोगों में अधिकांश मामले (लगभग 82.6 करोड़) प्रेस्बोपिया के हैं।
प्रेस्बोपिया उम्र बढ़ने के साथ होने वाली बीमारी है, जिसमें लोगों को पास की वस्तुएं धुंधली दिखने लगती हैं। अन्य लगभग 12 करोड़ मामले रिफ्रेक्टिव इरर के हैं। इस बीमारी में लेंस किसी वस्तु से टकराकर आने वाली प्रकाश की किरणों को पूरी तरह से मोड़ नहीं पाता, जिससे धुंधलापन आ जाता है।
विश्व स्वास्थ्य संगठन की रिपोर्ट में कहा गया है कि ग्रामीण समुदाय, कम आय वाले देश और अधिक उम्र के लोग इन दोषों से ज्यादा जूझ रहे हैं। रिपोर्ट में बताया गया है कि शहरी आबादी में दृष्टि दोष के मामले कम होते हैं। उदाहरण के लिए, भारत में दिल्ली की शहरी आबादी में (60-69 वर्ष के बीच) 20 प्रतिशत लोगों में दृष्टि दोष पाया गया हैं। यह आंकड़े उत्तर भारत के ग्रामीण इलाकों के मामले एक तिहाई कम हैं। यहां 28 फीसद लोगों में दृष्टि दोष पाया गया।
रिपोर्ट में अनुमान लगाया गया है कि वैश्विक स्तर पर 1.19 करोड़ लोग ग्लूकोमा, ट्रेकोमा और डायबिटिक रेटिनोपैथी से जूझ रहे हैं। इन बीमारियों की समय रहते रोकथाम की जा सकती थी। 1.19 करोड़ लोगों में इन बीमारियों को रोकने में अनुमानित लागत 5.8 अरब डॉलर के कुछ अधिक आती। हालांकि, निम्न मध्यम आय वर्ग वाले देशों में मोतियाबिंद को लेकर सुधार दिखा है।
विश्व स्तर पर में अंधेपन के सबसे बड़े कारण मोतियाबिंद की सर्जरी हो रही है। भारत में मोतियाबिंद सर्जरी की दर 1981 से 2012 के बीच नौ गुना बढ़ी है। यहां प्रति दस लाख की आबादी में 6000 सर्जरी हुई हैं। रिपोर्ट में कहा गया कि यह नेशनल प्रोग्राम फॉर कंट्रोल ऑफ ब्लाइंडनेस के कारण संभव हुआ, जिसे 1976 में लांच किया गया था और 2016- 17 में 65 लाख लोगों की मोतियाबिंद की सर्जरी की गई थी।