पहाड़ में उद्योग धंदे यूं ही चोपट नहीं हुए हैं इसके पीछे राज्य में भ्रष्ट अफसरशाही व लालची नेताओ की पूरी फ़ौज जिम्मेवार हैं| यही कारण हैं की लोग काम कम नेतागिरी ज्यादा करने में मस्त हैं| हालत यह हैं की यदि आपको कोई भी काम करवाना हो तो उसके लिए पैसा तैयार रखिये| यह सारी बाते विपक्ष में रहते हुए तो सबको दिखाई देती हैं लेंकिन सत्ता पाते ही आँखे कमजोर व यादाश्त ख़त्म क्यों हो जाती हैं|
ताजा मामला बागेश्वर जिले का हैं जन्हा आजकल एक ऑडियो वायरल हो रहा हैं जिससे पता चलता हैं की किस प्रकार कंपनियों को कमीशन देने के लिए दबाव डाला जाता हैं वो भी 2% तभी तो लोग पहाड़ में उद्योग नहीं लगाना चाहते और पलायन कर रहे हैं और सरकार हैं की 0 टॉलरेंस के नाम पर लोगो की भावनाओ व भविष्य से खिलवाड़ कर रही हैं|
प्राप्त ऑडियो रिकॉर्डिंग के अनुसार यदि आपको पहाड़ पर कंपनी लगानी है तो दो प्रतिशत कमीशन देना होगा। यहां काम करने वाले सभी उद्योगों के साथ यही तय हुआ है। यह कपकोट क्षेत्र के एक नेता की ऑडियो में कही गई बात है जो सोशल मीडिया पर जमकर वायरल हो रही है। ऑडियो सुनने वालों की जुबान पर नेता का भी नाम चढ़ गया है। ऐसे में सहज अंदाजा लगाया जा सकता है जब नीति निर्माता ही कमीशन लेकर काम कर रहे है तो पहाड़ तो विकास की दौड़ में पिछड़ेगा ही। कमीशनखोरी के कारण ही निजी कंपनियां उद्योग लगानेमें रुचि नहीं लेतीं1सोशल मीडिया पर एक जनप्रतिनिधि का कमीशन मांगने का हो रहा है।
यह कंपनी कपकोट क्षेत्र में है। जब उसने नेता जी को 15 हजार रुपये दिए तो वह गुस्से में आ गए। उन्होंने फोन कर कंपनी के मालिक को कहा कि यह तो अपमान कर दिया आपने। हमारा दो प्रतिशत कमीशन होता है। जब कंपनी मालिक ने कहा कि जब हम ईमानदारी से काम कर रहे है तो कमीशन किस बात का दें। अगर दो प्रतिशत कही पर लिखा है या हमने कही साइन किया है तो बताओ। नेताजी ने कहा कि कैसी बात कर रहे हो। दिल्ली में, सिडकुल क्षेत्र में देखो जो भी कंपनी काम कर रही है वह दो प्रतिशत नेताओं को कमीशन दे रही है।1जब नेताजी की दलील पर कंपनी मालिक नहीं माना तो वह उसकी चाटुकारिता करने से भी नहीं चूके। उन्होंने कंपनी मालिक से कहा ़रहिमन हीरा सब कहे, लाख टका है मोल‘।
इसका मतलब है कि हीरा स्वयं अपने मुंह से नहीं कहता कि उसका मूल्य लाख रुपया है। रहिमन का यह दोहा लोग खूब चर्चाओं में है। नेताजी यह कहना चाह रहे थे कि उनका मूल्य हजारों में नहीं लाखों में है। कमीशनखोरी के दल-दल में फंसे नेताओं के कारण ही गांवों में विकास ठप हो गया है। लोग लगातार गांवों को छोड़कर पलायन कर रहे है। कोई कंपनी पहाड़ में इसलिए नहीं टिक पा रही कि नेता कमीशन मांगने लग जाते थे। इसलिए कंपनियां यहां नहीं आना ही नहीं चाहतीं।