मोबाइल फोन पर कॉलर की पहचान करने वाले ऐप ट्रूकॉलर के दुनिया भर के यूजर्स का डेटा एक प्राइवेट इंटरनेट फोरम पर बिक्री के लिए उपलब्ध है। इस तरह की ट्रांजैक्शंस की निगरानी करने वाले एक सायबर सिक्यॉरिटी एनालिस्ट ने बताया कि ट्रूकॉलर के भारतीय यूजर्स का कथित डेटा डार्क वेब पर लगभग 1.5 लाख रुपये (करीब 2,000 यूरो) में बेचा जा रहा है। ट्रूकॉलर के लगभग 14 करोड़ यूजर्स में से लगभग 60 प्रतिशत भारतीय हैं। इसके ग्लोबल यूजर्स के डेटा की कीमत 25,000 यूरो तक है।
यूनिफाइड पेमेंट्स इंटरफेस (UPI) के जरिए अपने भारतीय यूजर्स को पेमेंट सर्विसेज देने वाले ट्रूकॉलर ने हालांकि अपने डेटाबेस में सेंध लगने से इनकार किया है। स्वीडन की इस कंपनी ने कहा कि उसने अपने यूजर्स की ओर से ही डेटा की अनाधिकृत कॉपी करने के मामले पाए हैं। ट्रूकॉलर एक प्रीमियम सर्विस की भी पेशकश करता है, जिसमें सब्सक्राइबर्स पेमेंट देकर जितने चाहें उतने नंबरों को सर्च कर सकते हैं। ट्रूकॉलर के प्रवक्ता ने बताया, ‘हाल ही में यह हमारे ध्यान में लाया गया है कि कुछ यूजर्स अपने अकाउंट का गलत इस्तेमाल कर रहे हैं। हम यह पुष्टि करना चाहते हैं कि यूजर्स की किसी संवेदनशील जानकारी में सेंध नहीं लगी है।’
बिक्री के लिए उपलब्ध डेटा का एक नमूना देखने पर पता चला कि इसमें यूजर के निवास के राज्य और उसके मोबाइल सर्विस प्रोवाइडर जैसी जानकारियां शामिल हैं। ट्रूकॉलर ऐप पर बिना किसी क्रम के की गई नंबरों की सर्च में जो रिजल्ट मिले वे एनालिस्ट की ओर से हमें दिए गए डेटा से मेल खाते थे। हालांकि, कंपनी के प्रवक्ता ने कहा, ‘एक टीम मामले की जांच कर रही है। इसने पाया है कि सैम्पल डेटा का एक बड़ा हिस्सा मेल नहीं खाता या वह ट्रूकॉलर का डेटा नहीं है।’
ट्रूकॉलर ने इस वर्ष की शुरुआत में कहा था कि उसने अपने प्लैटफॉर्म का गलत इस्तेमाल करने के शक वाले यूजर अकाउंट्स की जांच शुरू की है। इसने अब एक यूजर की ओर से सर्च किए जाने वाले नंबरों की प्रतिदिन की संख्या सीमित कर दी है। ट्रूकॉलर ने बताया, ‘हम यह दोहराना चाहते हैं कि यह हमारे डेटाबेस पर एक हमला नहीं है क्योंकि हमारे सर्वर पर स्टोर किया गया डेटा पूरी तरह सुरक्षित है। हम यूजर्स की प्रिवेसी और हमारी सर्विसेज की सुरक्षा को बहुत गंभीरता से लेते हैं।’
सायबर एक्सपर्ट्स का मानना है कि डेटा के इतने बड़े हिस्से तक पहुंच केवल ट्रूकॉलर के डेटाबेस में सेंध लगाकर ही मिल सकती है। सायबर सिक्यॉरिटी ऐंड प्रिवेसी फाउंडेशन के जे. प्रसन्ना ने कहा, ‘यह सामान्य डेटा ही नहीं, बल्कि कई फाइनेंशियल इंस्टीट्यूशंस का डेटा है। कंपनियों को सतर्कता बरतने और कस्टमर्स के डेटा को सुरक्षित रखने की जरूरत है।’