प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी व उत्तर प्रदेश मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के विकास के मंत्र को लेकर कई विभाग निकल पड़े हैं व लेकिन उनके लिए विकास का मतलब बिल्डर व माफिया का विकास हैं आम जनता का नहीं।
गाजियाबाद में विकास प्राधिकरण का जन्म लोगो को कम लागत में घर व नियोजित शहरीकरण को लेकर हुआ था लेकिन शहरीकरण नाम पर सिर्फ ओर सिर्फ सीमेंट के जंगलो, प्रदूषण, अवैध निर्माण व अनियंत्रित भीड़ ने लिया हैं।
हमे तो सिर्फ एक बात मालूम हैं की जीडीए की कृपा से किसी का लाभ हुआ हो या ना हुआ हो पर बिल्डरों जीडीए अधिकारियों के साथ मिलकर पिछले 10 सालो में अपना असीमित विकास किया व सरकार द्वारा बनाई गए सभी परियोजनाओ के साथ विकास प्राधिकरणों ने खेल खेलकर चांदी काटी हैं। ऐसा हम नहीं सरकारी लेख कहते हैं की कैसे विकास प्राधिकरण बी टीम के रूप में बिल्डर के लिए कार्य कर रहे हैं।
उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा वर्ष 2007 में उत्तर प्रदेश हाई टेक टाउनशिप नीति लागू की गई थी जिसमे कई बिल्डरों का चयन हुआ था व उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ प्राधिकरण ने अंसल एपीआई को नियमो को ताक पर रखकर फायदा दिया था व बाद में उसके कई अधिकारियों ने अंसल एपीआई में नौकरी शुरू कर दी थी।
गाजियाबाद में स्थित उप्पल चड्ढा हाई टेक प्राइवेट लिमिटेड के साथ जीडीए भी उसी राह पर हैं व उसने बिल्डर को अनियमित लाभ देते हुए कई उत्तर प्रदेश सरकार के सबको अत्याधुनिक व अंतर्राष्ट्रीय स्तर की सुविधाए कम लागत में देने को धूमिल किया हैं। आइये इस लेख में हम आपको विस्तार से बताते हैं।
हाई टेक टाउनशिप नीति क्या थी व ले आउट में गैर-अनुपातिक बदलाव।
इस नीति के तहत सरकार ने लोगो को अत्याधुनिक सुविधाओ के साथ एक विस्वस्तरीय शहर को बसाने की नीव रखी थी ताकि महानगरो के अव्यवस्थित शहरीकरण का बोझ घट सके व लोग व्यवस्थित होकर रह सके।
सरकार की नीति के अनुसार इस शहर के 100% हिस्सो को कई स्तरीय सुविधाए दी गई थी जैसे की इस शहर का एक अपना व्यवस्थित तंत्र होगा जिसमे क्लब, अस्पताल, बैंक, अग्निशमन केंद्र, टेलीफ़ोन एक्स्चेंज, विद्यालय, व्यावसायिक केंद्र होने व उसके लिए सरकार ने कुछ दिशानिर्देश जारी किए थे जो की नीचे हैं की किस सुविधा के लिए कितना क्षेत्र होगा।
इस तालिका के अनुसार जो की हमने जीडीए बोर्ड बैठक संख्या 137 से ली हैं जो 07 अक्तूबर 2013 को हुई थी उससे लिया हैं। इसके अनुसार पूरे क्षेत्रफल का 31 से 38 प्रतिशत तक जो की 1501.87 एकड़ होता हैं रखा गया था व उसी क्रम में व्यसायिक व कार्यालय 6 से 8 प्रतिशत था जो की 386.03 एकड़ था ओर सार्वजनिक अर्ध सार्वजनिक सुविधाओ के लिए 8 से 10 प्रतिशत रखा था जो की 312.81 एकड़ था।
उसी प्रकार से ओद्योगिक प्रतिशत 8-10 प्रतिशत था जो 267.47 एकड़ कर दिया गया जो की 6.68 प्रतिशत था। मनोरंजन 3 से 5 प्रतिशत कुल ग्रीन 15 से 18 प्रतिशत व कुल रोड के लिए 710.14 एकड़ रखा गया था जो की अपनी पूर्ववर्ती योजना से 102 एकड़ कम था।
बोर्ड मीटिंग 164 के आकडे
वर्ष 2024 में हुई जीडीए की 164वी बोर्ड मीटिंग में लगता हैं की अधिकारियों ने नियमो को ताक पर रख दिया था व जिस अनुपात में जमीन का ले-आउट कम हुआ था उसी अनुपात में सभी भूखंडो में से उसे घटाना चाहिए था पर ऐसा हुआ नहीं। आप नीचे तालिका देख सकते हैं।
ले आउट प्लान 2024 में क्षेत्रफल 4004.25 एकड़ से घटकर 3786.79 एकड़ हो गया है व उसके अनुसार सभी भू उपयोग में आनुपातिक कमी आनी चाहिए थे पर मजेदार बात तो यह हैं की भूखंडीय विकास को 545.95 एकड़ से बढ़ाकर 614 एकड़ कर दिया जो की घटना चाहिए था। जो की नियमो के अनुसार अधिकतम 38% से ज्यादा हैं।
प्रदेश में योगी सरकार उद्योगो को बढ़ावा देने के लिए निरंतर प्रयास कर रही है व उद्योग लगाने के लिए भूमि तलाश रही रही हैं व हाल ही में मेरठ रोड पर कोर्ट ने 3 एकड़ उद्योगो के पक्ष में आदेश जारी किया हैं जबकि इधर जीडीए ने वेव सिटी के अंदर उद्योगो के लिए आरक्षित 267.47 एकड़ से घटाकर 6५ एकड़ कर दिया हैं जो की उसके पूर्व के अनुपात से 75% कम हैं। क्या जीडीए ने इसे बिना विचार विमर्श के पास किया होगा?
गाज़ियाबाद विकास प्राधिकरण को देखकर तो लगता ही नहीं हैं की उनपर कोई भी नियम लागू होता हैं व इसकी झलक बोर्ड मीटिंग में वेव सिटी के लिए लिखे गए बिन्दुओ को देखकर लगता हैं क्योंकि बोर्ड मीटिंग संख्या165 के बिन्दु संख्या 2 के अनुसार
“हाइटेक टाउनशिप नीति के अनुसार मानचित्र निर्गत से पूर्व योजना के विकास कार्यो को सुनिश्चित करने के उद्देश्य से टाउनशिप के अंतर्गत कुल विक्रय योग्य की 25 प्रतिशत भूमि का बंधक विलेख निष्पादित करना होगा।“
इसका अर्थ तो तो यही होता हैं की उप्पल चड्ढा द्वारा अभी तक 25 प्रतिशत भूमि जीडीए के नाम नहीं की हैं जबकि हाईटेक टाउनशिप नीति को लागू किए हुए लगभग 18 वर्ष हो चुके है व बिल्डर द्वारा अधिकतर विकसित भूमि बेच दी गई हैं पर उनकी रजिस्टरी ना होने के कारण खाली होने का भ्रम पैदा किया गया हैं। आप भी इस बात को मानते होंगे की यदि इसकी जगह कोई आम नागरिक होता तो जीडीए अबतक उसकी नीलामी करा चुका होता।
बोर्ड मीटिंग 165 में लिए गए निर्णय
प्राधिकरण की बोर्ड मीटिंग में लिए गए निर्णय के अनुसार प्राधिकरण द्वारा प्रस्तुत प्रस्ताव पर सम्यक विचार विमर्श उपरांत पूर्व में उल्लेखित समस्त शर्तो एव प्रतिबंधों तथा निम्मलिखित शर्त एव प्रतिबंध के साथ प्रस्ताव अनुमोदित किया गया- (यह शर्ते वर्ष 2006 से अभी तक पूरी नहीं हुई हैं। हर मीटिंग में इनका उल्लेख किया जाता हैं व नई अनुमति इन ही शर्तो को पूरा करने के साथ जारी कर दी जाती हैं)
“प्रस्तावित मास्टर प्लान ग्रीन क्षेत्रफल 56.17 एकड़ भूमि विकासकर्ता द्वारा जब तक क्रय/ अर्जित नहीं की जाती हैं तब तक विकासकर्ता को योजना के अंतर्गत 56.17 एकड़ भूमि के समतुल्य अपने स्वामित्व की बूमी को मास्टर प्लान ग्रीन हेतु योजना के तलपट मानचित्र पर चिह्नित करना होगा। तलपट मानचित्र में नियोजित मास्टर प्लान ग्रीन में अवशेष 58.17 एकड़ भूमि को क्रय करने तक विकासकर्ता द्वारा चिह्नित भूमि का विक्रय किसी भी दशा/ प्रकार से नहीं किया जाएगा एव मानचित्र स्वीकृती हेतु कोई भी प्रस्ताव प्रस्तुत नहीं किया जाएगा। इस आशय का शपथ पत्र विकास कर्ता द्वारा प्रस्तुत करना होगा। “
उप्पल चड्ढा द्वारा पूरे क्षेत्र की भूमि को एक ही दर से किसानो से खरीदा गया था व सीएजी की आपत्तियो के बाद जब राज्य सरकार ने विकासकर्ता की डीपीआर पास नहीं की ओर विकासकर्ता को बकाया जमा कराने को को कहा तो उप्पल चड्ढा के अधिकारियों ने जीडीए के साथ मिलकर अपने 6 वाणिज्यिक प्लॉट को उचे दर पर दिखाकर जीडीए/ सरकार को 442.47 करोड़ रुपए की गारंटी दे दी जबकि देखा जाये तो उन प्लाट्स का मूल्य नहीं के बराबर ही होगा।
वर्ष 2007 में पारित हाइटेक नीति के निर्माता जानते थे की इतनी बड़े व विकसित शहर के लिए विकासकर्ता अपर्याप्त होगा व उसी कारण से नीति निर्माताओ ने विकासकर्ता को सरकारी विभागो से कार्य कराने की अनुषंशा की थे व इसके लिए वो 15 प्रतिशत अधिभार ले सकते थे पर उप्पल चड्ढा ने ऐसा नहीं क्या जिसके कारण आज नागरिकों व बिल्डर के बीच अवरोध बढ़ता जा रहा हैं ओर शहर अपनी योजनो व विकास के कोसो दूर हो चुका हैं।
अन्य बिल्डरों को भूमि बेचना
एक पत्र श्री के एल मीना सचिव, उत्तर प्रदेश शासन द्वारा दिनाक 13 जुलाई 2006 को सभी उपाध्यक्ष विकास प्राधिकरण व आवास आयुक्त को जारी किया गया था जिसका पत्र संख्या 4033/आठ-1-06-45विविध/06टीसी है व इसका विषय उत्तर प्रदेश हाई-टेक टाउनशिप विकसित करने के लिए निजी पूंजी निवेश को प्रोत्साहन हेतु “हाई टेक टाउनशिप नीति 2007” से संबन्धित एमओयू, पूरक एमओयू तथा डेवलपमेंट एग्रीमेंट उपलब्ध कराने के संबंध में।
इसके अलावा हाइटेक टाउनशिप नीति 2007 के बिन्दु संख्या 30 में स्पष्ट उल्लेख हैं की विकासकर्ता द्वारा टाउनशिप से संबन्धित आंतरिक व बहाय कार्य अपनी लागत पर किया जाएँगे।
Development Agreement Clause No 12:- The Second Party shell not assign/transfer the said development permission or any permission or other benefits of this Agreement to any other person.
इसके अलावा राज्य सरकार ने ग्रुप हाउसिंग को लेकर कई नियम बनाए थे जैसे की प्रति हेक्टेयर 200 आवास से ज्यादा नहीं हो सकते हैं या इसमे 1000 प्रति व्यक्ति से ज्यादा नाही हो सकते पर वेव ग्रुप द्वारा गौड हाई टेक को जो सैक्टर 3 की जमीन जीएच 06 बेची हैं वो 4.7 हेक्टेयर हैं व उसके हिसाब से इसमे केवल 1000 से कम घर ही बन सकते थे पर गौड द्वारा की गई घोषण के अनुसार इसमे वो 1200 घर बना रहा हैं व जिसका नक्शा खुद जीडीए ने ही पास किया हैं।
सरकारे व बड़ी बड़ी कंपनीया नियमो के अंतर्गत काम करती हैं ताकि लोग अनुचित लाभ ना ले सके व यदि एक विभाग ने किसी भी कारण से किसी को कोई अनुचित लाभ दिया हो तो दूसरा विभाग उसपर नियमो के तहत कार्यवाही कर सके पर जीडीए के बाद उत्तर प्रदेश रेरा ने भी गौड को 34 मजीला इमारत की अनुमति दे दी ओर जन्माष्टमी वाले दिन उसे रेरा की साइट से लाइव किया गया जबकि उस दिन सरकारी छुट्टी थी।
प्राधिकरण में बैठे लोग इतना भी नहीं सोचते की यह बिल्डर किन संसाधनो के दम पर इतनी बड़ी बड़ी परियोजनाए ला रहे हैं। वेव सिटी के अंदर पानी के लिए सिर्फ एक ही स्त्रोत वो भी भूजल व इसके अलावा बिल्डर ने किसी ओर स्त्रोत से पानी लाने की कोशिश ही नहीं की हैं व मजे की बात तो देखिये की भूजल विभाग व जिला प्रशासन ने आँख बंद करके इस क्षेत्र में 45 ट्यूबवेल लोगो को पीने का पानी देने के नाम पर दी है जिसमे से अधिकतर का प्रयोग बिल्डिंग बनाने में हो रहा हैं।
अनियमितताए चरम पर
वेव सिटी में हाइटेक नीति के अंतर्गत व्यावसायिक प्रतिष्ठानो को केवल व्यावसायिक क्षेत्र में ही होना चाहिए था पर बिल्डर ने आवासीय क्षेत्रों में भी दुकानों का निर्माण किया गया हैं व जब चाहे किसी भी क्षेत्र का नक्शा अपने हिसाब से बदलता रहता हैं। रेरा व जीडीए के अधिकारी मात्र खाना पूर्ति के लिए आकर उसको प्रमाणित करके चले जाते हैं।
बिल्डर द्वारा रोड के बीच में स्थित हरित क्षेत्र में जनरेटर लगाए गए वो जीडीए के अधिकारियों को बिलकुल नज़र नहीं आए बिल्डर द्वारा अगल बगल में बनाए गए ऊंचे ऊंचे माल में हो रही अनियमितताए बिलकुल नहीं दिखी पर उसके बगल में ग्राउंड फ्लोर पर बने 4 कमरे उसे नज़र आ गए व उनके अधिकारी आकार उनपर सील लगाकर चले गए।
जबकि उसके सामने व अगल बगल में बड़े बड़े बिल्डरों द्वारा हुए अवैध निर्माणों पर उनकी नज़र ही नहीं पड़ी ऐसा कैसे हो सकता हैं की भूतल में बना निर्माण तो नज़र आ गया पर रोड में पड़े बड़े बड़े जनरेटर नहीं नज़र आए, आवासीय क्षेत्र में बिल्डर द्वारा बनाई गए दुमंजिला दुकाने नज़र नहीं आई, सर्विस रोड को घेरकर बनाया गया पार्क नज़र नहीं आया, ड्रीम होम में ग्राउंड फ्लोर पर बनी दुकानों पर उनकी नज़र ही नहीं जा पायी बस वो सैक्टर 2 में भूतल बार बनी बिल्डिंग पर ही कार्यवाही करके चले गए।
हमने इस विषय पर पारदर्शिता के लिए जीडीए में कई आरटीआई लगाई व उनके जवाब देखकर नहीं लगा की यह जवाब किसी आरटीआई प्रशिक्षित अधिकारी द्वारा लिखा गया होगा। आरटीआई अधिनियम 2005 के अनुसार कार्यालय व जन सूचना अधिकारी सूचना को अवरुद्ध नहीं करेगा व जो दस्तावेज़ जैसा हैं उसे वैसा ही आवेदक को निष्पक्षता से प्रदान करेगा।
नक्शे का खेल
जीडीए में नक्शे को पास कराने में बड़ा खेल खेला जाता हैं व पैसा लेकर लाल बिन्दु लगाकर नक्शा पास कर दिया जाता हैं। ऐसा तब होता हैं जब आम आदमी अपने रहने के लिए घर में कुछ जरूरी व मामूली से बदलाव करता हैं पर वही बिल्डर द्वारा नक्शा पास कराकर किए गए अतिरिक्त व अन्य प्रकार के निर्माणों को जीडीए ना केवल पास कर देता हैं बल्कि उसपर लाल बिन्दु भी नहीं लगाता हैं। ऐसा ही खेल जीडीए द्वारा सैक्टर 5 के ड्रीम होम्स के अतिरिक्त निर्माण के दौरान किया गया हैं।
यह बात बड़ी हैरानी की हैं जब जीडीए लोगो को दो मंज़िला से ज्यादा के लिए नक्शे पास नहीं करता हैं तो वो इन बिल्डरों के 34 मंज़िला बिल्डिंगों को किन आधार पर अनुमति प्रदान करता होगा। हम बचपन से देखते आ रहे हैं की ग्रुप हाउसिंग का मतलब एक कंपनी या समूह से संबन्धित था व इसी के आधार पर नोएडा, पड़पड़गंज, विनोद नगर, मयूर विहार, रोहिणी व द्वारका में प्लॉट दिये गए थे व उन भवनो की उचाई 5 मंजिल से ज्यादा नहीं होती थी।
उप्पल चड्ढा द्वारा गौड ही नहीं एसकेए, कारयान, छबिलदास इत्यादि अन्य बिल्डरों को भी जमीन बेची गई हैं जो की हाई टेक टाउनशिप 2007 के नियमो का उलंघन हैं व इन सभी को जीडीए ने ही अप्रूवल दिया हैं।
आम जन की जिम्मेवारी
गलती बाबुओ की नहीं हैं गलती हैं आम जनता की हैं जिनहोने अपने अधिकारो के प्रति लड़ना ही छोड़ दिया हैं व यही कारण हैं की प्राधिकरणों में बैठ अफसर भयमुक्त होकर जबर्दस्त लूट में व्यस्त हैं इतना ही नहीं रिटायरमेंट के बाद वो बिल्डरों की गोद में बैठ जाते हैं व अनुभव के दम पर भ्रष्टाचार का नंगा नाच करते हैं।
अगर आपको याद हो की मायावती के काल में नोएडा, ग्रेटर नोएडा व येडा प्राधिकारणों में नौकरशाहों व कर्मचारियो ने जमकर लूट मचाई थी व इसी लूट के दमपर पूर्व आईएएस मोहिंदर सिंह, यादव सिंह जैसे अनगिनत लोग आज अरबों में खेल रहे हैं पर नियति को देखो वो लोग चैन की नींद को तरस रहे हैं।
यादव सिंह सालो की जेल के बाद आज बेशक जेल से बाहर जमानत पर हैं पर केस जारी हैं व हाल ही में पूर्व आईएएस मोहिंदर सिंह के घर से 7 करोड़ के हीरे मिले है व कभी उनकी तूती बोलती थी पर आज जब जीवन में व्यक्ति को शांति चाहिए तो उन्हे अपने बचाव के लिए दर दर की ठोकरे नसीब होंगी।
प्रदेश में हाईटेक टाउनशिप नीति के रूप में पूर्ववर्ती सरकारो का जो सपना था उसे भ्रष्ट नौकरशाहों ने अपने लालच के चक्कर में पीछे छोड़ दिया हैं। कहावत हैं की बकरे की अम्मा कबतक खैर मनाएगी, एक ना एक दिन तो सबकी बारी आएगी।