आखिरकार त्रिवेन्द्र सिंह रावत ने मान ही लिया की समाधान करना उनके बस की बात नहीं हैं तभी तो मुख्यमंत्री कार्यालय व राष्ट्रीय सूचना केंद्र के अधिकारियो की कह ही दिया की समाधान पोर्टल को बंद कर दिया जाए| यह उत्तराखंड की विडम्बना ही रही हैं की भूवन चन्द्र खंडूरी के बाद कोई भी इसे कुशल नेतृत्व नहीं दे पाया हैं और यही कारण की जो भी मुख्यमंत्री बना वो पहले वाले से भी अधिक नेत्रित्व्हीन व अकुशल पाया गया हैं|
आज उत्तराखंड के पास लोक शिकायत के लिए कोई भी जरिया नहीं हैं सिवाय “राज दरबार” जिसे जनता दरबार का नाम दिया जाता हैं लोग दूर दूर से शिकायत लेकर आते हैं और केवल और केवल उन्ही लोगो को दरबार में आने दिया जाता हैं जिनकी समस्याए धीर गंभीर नहीं होती| इस बार के “रावत दरबार” में 108 के कर्मचारियों, शिक्षको व भ्रष्टाचार के शिकायतकर्ताओ को आने ही नहीं दिया और बाहर रोककर रखा गया|
राज्य सरकार ने लाखो रूपये व हजारो घंटे इस समाधान पोर्टल को विकसित करने में लेकिन सही नेत्रित्व व सेवा भाव के अभाव में पूरे एक विकसित तंत्र को ख़त्म कर डाला| आजकल जब पूरी दुनिया स्वचालित तकनीक की और जा रही है वही त्रिवेन्द्र सिंह सरकार राज दरबार की और अपने कदम बढ़ा रही हैं|
कुछ बाते कभी कभी निराश करती है की राजनेता सही में विकास कर रहे हैं या विनाश की भूमिका बाँध रहे हैं यह वही त्रिवेन्द्र सिंह रावत हैं जिन्होंने अपना APP लोकार्पण करते हुए कहा था की जनता सीधा उनसे संवाद कर सकती हैं और उनकी शिकायतों पर तत्वरित कार्यवाही होगी| उसके कुछ दिनों बाद ही साहब ने मुख्यमंत्री समाधान फ़ोन सेवा का लोकार्पण किया और कहा की आपकी यह सेवा 24 घंटे सहायता के लिए उपलब्ध हैं|
क्या त्रिवेन्द्र सिंह रावत मान चुके थे की App के द्वारा सुविधा देना उनके बस की बात नहीं या खेल कुछ और ही हैं की 1905 फ़ोन सेवा का ठेका अपने किसी विश्वासपात्र के हावाले कर दिया ताकि समस्याओ को दबाया जा सके ओर अपनों की कमाई भी हो सके|
इस दरबार के कारण पुलिस, प्रशासन के ना जाने कितने अधिकारी अपने सभी काम छोड़कर राज दरबार में बैठते हैं क्योकि पता नहीं कब किसकी बारी आ जाए| क्या यह सत्ता का दुरूपयोग नहीं हैं लोगो ने डबल इंजिन सरकार सत्ता इसलिए सौपी थी की तंत्र में सुधार आएगा लेकिन रावत सरकार ने तो इसका भटठा ही बिठा डाला|