पिछले करीब 25 वर्षों में हजारों गायों की सेवा कर उनकी जान बचा चुकी फ्रेडरिक एरिना ब्रूनिंग अपना पद्म श्री सम्मान लौटाना चाहती हैं। फ्रेडरिक एरिना ब्रूनिंग को इसी साल ही गोसेवा के लिए पद्म श्री से सम्मानित किया गया है। दरअसल, फ्रेडरिक एरिना ने भारत में ही रहना चाहती हैं और इसीलिए उन्होंने वीजा बढ़ाने का आवेदन किया था, लेकिन विदेश मंत्रालय ने उनके आवेदन को खारिज कर दिया है।
मथुरा में गायों के लिए आश्रम चलाने वाली फ्रेडरिक एरिना उर्फ सुदेवी दासी ने कहा, ‘इस पुरस्कार को रखने का क्या मतलब है, जब मैं यहां रह ही नहीं सकती हूं और बीमार गायों की देखभाल नहीं कर सकती हूं?’ फ्रेडरिक एरिना ने बताया कि उन्होंने वीजा अवधि बढ़ाने के लिए आवेदन दिया था, लेकिन विदेश मंत्रालय के लखनऊ कार्यालय ने बिना कोई कारण बताए उनके आवेदन को खारिज कर दिया।
फ्रेडरिक एरिना का वीजा 25 जून को खत्म हो रहा है। उन्होंने कहा, ‘मैं मथुरा में स्थानीय अधिकारियों से संपर्क कर रही हूं ताकि यह जान सकूं कि मुझे अब क्या करना चाहिए?’ जर्मन महिला ने कहा कि उन्हें पद्म श्री लौटाकर बहुत दुख होगा लेकिन अगर वीजा आवेदन को खारिज किया जाता रहा तो उनके पास इसे लौटाने के अलावा और कोई चारा भी नहीं है।
यह पूछे जाने पर कि उनके वापस जर्मनी जाने पर गायों और बछड़ों का क्या होगा तो फ्रेडरिक एरिना ने कहा, ‘मुझे पता नहीं है। मैं नहीं जानती हूं कि मेरे जाने के बाद कौन उनकी देखभाल करेगा। मैं उन गायों को लेकर ज्यादा चिंतित हूं जो बीमार हैं और मेरे द्वारा दवाएं देने पर जिंदा हैं।’ बता दें कि उनके आश्रम में करीब 2500 गायें हैं। बता दें कि फ्रेडरिक एरिना ब्रूनिंग नाम की महिला 25 साल पहले यूपी के मथुरा घूमने आई थीं, यहां वह आवारा गायों की बदहाली देखकर वह परेशान हो गई थीं।
उन्होंने तय किया कि वह आजीवन यहीं रहकर इन जानवरों की देखभाल करेंगी। लोगों की चकाचौंध से दूर एक सुनसान और मलिन इलाके में फ्रेडरिक एरिना ब्रूनिंग 2500 से ज्यादा गायों और बछड़ों को एक गोशाले में पाल रही हैं। वह बताती हैं कि गोशाले के अधिकतर जानवरों को उनके मालिक ने छोड़ने के बाद फिर से अपना लिया था और उन्हें अपने साथ ले गए। ब्रूनिंग को स्थानीय लोग सुदेवी माताजी कहकर बुलाते हैं।
61 वर्ष की ब्रूनिंग सरकार के प्रति अपना आभार व्यक्त करती हैं जिसने उनके काम को पहचाना और सम्मानित करने का फैसला किया। वह उम्मीद करती हैं कि लोग उनसे प्रभावित होंगे और जानवरों के प्रति दयालु बनेंगे। वह बताती हैं, ‘गोशाले में 60 कर्मचारी हैं और उनकी सैलरी के साथ जानवरों के लिए अनाज और दवाइयों में हर महीने 35 लाख रुपये का खर्च आता है।’ उनकी पैतृक संपत्ति से उन्हें हर महीने 6 से 7 लाख रुपये मिलते हैं।
ब्रूनिंग ने कहा, ‘मैंने एक बहुत छोटे से आंगन में इसकी शुरुआत की थी और फिर राधाकुंड में सुरभि गोशाला निकेतन नाम से एक गोशाला का निर्माण कराया।’ उन्होंने गोशाले के निर्माण के लिए अपने अभिभावक का पैसा लगाया है। ब्रूनिंग ने उन गोवंशों के लिए अलग बाड़े बनाए हैं जो अंधे या घायल हैं और उन्हें विशेष उपचार की जरूरत है। अब इस जर्मन नागरिक को सरकार से एक ही चीज की उम्मीद है और वह है एक लॉन्ग टर्म वीजा या फिर भारतीय नागरिकता। वह कहती हैं, ‘ताकि मुझे हर साल अपना वीजा रिन्यू न कराना पड़े।’