निर्वाचन आयोग द्वारा चम्पावत चुनाव की घोषणा हो चुकी है व नियमो के अनुसार उत्तराखंड में आचारसंहिता लगी होनी चाहिए और प्रत्याशियों को उसका आदर करना चाहिए एव राज्य निर्वाचन आयोग व केंद्रीय आयोग को प्रत्याशियों द्वारा लोगो को प्रभावित करने की कोशिशो को संज्ञान में लेना चाहिए|
विगत दिनों उत्तराखंड के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने देहरादून में परिवहन विभाग में जाकर छापेमारी की यह एक प्रशासनिक फैसला था व मुख्यमंत्री, मंत्रियो व अधिकारियों को अक्सर ऐसा करना भी चाहिए ताकि तंत्र में निकम्मों को दंड दिया जा सके|
धामी द्वारा मुख्यमंत्री के रूप में यह कार्यवाही एक उदहारण हैं उनके मंत्रियो व अधिकारियो के लिए जो कार्यालय को ही अपना ब्रह्माण्ड समझ चुके हैं व औचक कार्यवाही और अपनी जिम्मेवारियो बचते हैं क्योकि वह जानते है की उत्तराखंड में मक्कारी चरम पर हैं व लोगो को उसकी आदत सी हो गयी है| अगर एक बार में काम हो भी जाए तो वो विशवास ही नहीं करेंगे की सच में काम हुआ है|
परिवहन विभाग की कार्यवाही के दौरान धामी यह भूल गए की उनका यह कृत्य लोगो को प्रभावित कर सकता हैं जो की निर्वाचन की मूल भावना के विरुद्ध हैं व इसका सकारत्म परिणाम सोशल मीडिया, अखबारों व अन्य माध्यमो से लोग पर पड़ेगा|
हमारा यह मानना है की सरकार के मुखिया जो की एक प्रत्याशी है उन्हें इस कृत्यों से बचना चाहिए था व निर्वाचन आयोग को इसपर संज्ञान लेकर कार्यवाही भी करनी चाहिए थी ताकि शक्तिशाली व्यक्ति संसाधनों का दोहन ना कर सके क्योकि यह लोकतंत्र को बचाए रखने के लिए अत्यंत आवश्यक हैं|