उत्तराखंड में लोगो ने सामजिक कार्यो को अपनी कमाई का जरिया बना डाला हैं जिससे की अगर कोई सही कार्य भी कर रहा हैं तो लोग उसे संशय के नजरो से देखते हैं| आजकल पूरे उत्तराखंड में सबसे सस्ता, तेज व कारगर कमाई का हथियार हैं और सोशल मीडिया, व तथाकथित सामजिक कार्यकर्ता/पत्रकारों के सांठगाँठ ने इसे और खतरनाक बना डाला हैं|
आइये हम कुछ उदहारण देकर आपको समझाते हैं| आज नैनीताल का लालकुआ क्षेत्र सेंचुरी पेपर मिल के कारण विश्वपटल पर छाया हुआ हैं यह मिल 1984 में शुरू हुई थी और इसके कारण इस क्षेत्र का द्रुतगामी विकास हुआ आज सेंचुरी ने देश विदेश में कई विख्यात पुरस्कार अपनी गुणवत्ता, कार्यशेली व पर्यावरण के रखरखाव को लेकर पाए हैं|
विकास आज सेंचुरी के लिए विनाश का रूप ले चुके है क्योकि विकास व काम की खोज में लोगो ने लालकुआ में अवैध बस्तिया बसाई और कई तो सेंचुरी की दीवार से लगकर ही हैं| होता यह हैं की सेंचुरी पेपर मिल की जरूरत के लिए जो कोयला आता है गर्मियों में उसमे घर्षण व ताप के कारण आग लग जाती है और धुँआ देने लगती है जो की एक सतत प्रक्रिया है लेकिन कई लोगो ने इसे प्रदुषण का नाम देकर सेंचुरी पर दबाव डाल रहे है ताकि अपने लोगो को अन्दर लगाया जाए या सेंचुरी के ठेके मिल सके|
आजकल गली गली में छुटभय्ये नेताओ, सामजिक कार्यकर्ताओ व पत्रकारों की बाढ़ सी आ चुकी हैं जिनका मकसद केवल और केवल पैसा कमाना हैं उन्हें जनसरोकार व मुद्दों से कोई मतलब नहीं हैं| इनका तो एक ही नारा हैं की अपना काम बनता तो भाड़ में जाए जनता|
हरीश नगरकोटी,
सामजिक कार्यकर्ता, नैनीताल रोड, हल्द्वानी
दूसरा उदहारण खनन विभाग से हैं खनन विभाग में टेंडर प्रक्रिया के दौरान लोगो से आवेदन मंगाए जाते हैं और होता यह हैं की माफिया लोगो अपनी कई कई निविदाये डालते हैं और उन निविदाओ में मोटरसाइकिल, स्कूटर, कार व ट्रक के नंबर डालते है क्योकि खनन के लिए सिर्फ ट्रक ही आधार हैं और उत्तराखंड में कोई पहचान नहीं हैं की कौन सा नंबर ट्रक का हैं और कौन सा अलग वाहन का इसलिए माफिया लोग इसका फायदा उठाते हैं और नंबर आने के बाद उस नंबर को बदलवा लेते हैं|
कथित सामजिक कार्यकर्ता/ पत्रकार इसी बात का फायदा उठाते हैं और RTI (सूचना के अधिकार द्वारा) जीते लोगो की जानकारी निकलवाते हैं और परिवहन विभाग में अपने सूत्रों से पता करवाते है की यह नंबर किन वाहनों के हैं ओर अगर कोई वाहन अगर ट्रक के आलावा दर्ज होता हैं तो व्यक्ति और सरकारी कर्मचारी पर दबाव डाला जाता है की उनको भी मलाई में हिस्सा मिले|
तीसरा उदहारण निजी विद्यालयो को मनमानी से जुडा हुआ है लोगो ने इसके खिलाफ आवाज उठानी चालू करी तो आननफानन में एक संगठन बना डाला और कई कार्यकर्ता उस संगठन के पदाधिकारी बन बैठे और कुछ दिन हड़ताल करी ताकि विध्यलाओ पर दबाव बनाया जा सके|
हम लोग बड़े लम्बे समय से सामजिक कार्यो से जुड़े हुए हैं और नए नए व लालची लोगो ने सामजिक कार्य को कमाई का जरिया बनाया हुआ है उनके लिए सही और गलत कुछ नहीं हैं और पैसा ही सब कुछ है| ऐसे लोगो के कारण ही हम जैसे लोगो को भी लोग उसी दृष्टि से देखते हैं|
गीता सुयाल भट्ट
सामजिक कार्यकर्ता, बरेली रोड, हल्द्वानी
कुछ दिनों बाद बिना निजी विद्यालयो और उस कथित संगठन में एक गुप्त समझोता हो गया और उसके बाद बिना किसी शर्तो के संगठन ने हड़ताल ख़त्म कर दी| आज अभिभावक लोग अपने को ठगा सा महसूस करते हैं करे भी क्या क्योकि उन्हें भय हैं की अगर कुछ बोलेगे तो विद्यालय उनके बच्चो को निकाल बाहर करेगा|
आजकल सरकार व स्थानीय गुप्तचर विभाग ऐसे लोगो व संगठन पर पूरी नजर रखे हुए हैं क्योकि ऐसे लोग लोगो की भावनाओ को भड़काकर अफवाह फैलाकर अपराध करते है|
आप सभी लोगो से निवेदन है की ऐसे तथाकथित संगठनो के झासे में ना आये व समझ बूझकर उसमे भाग ले क्योकि ऐसे संगठन लोगो की तकलीफों का दोहन करते हैं|
आपके सुझाव व टिप्पणियों का स्वागत हैं| 05946 222224 (Call/Whatsapp)