महिलाये फेरे लेते हुए

अजब गजब : दूल्हा बरात में नहीं जाता, बहन लेती हैं फेरे

महिलाये फेरे लेते हुए
महिलाये फेरे लेते हुए

भारत में परम्पराव व विविधताओ की कोई कमी नहीं हैं यहाँ एक से एक ऐसी अनोखी परंपराएं हैं कि आप दांतों तले उंगलियां दबा लें। ऐसी ही एक अनोखी परंपरा है गुजरात के आदिवासी इलाकों की। यहां दूल्‍हे को बारात में जाने की अनुमति नहीं है वह अपने घर पर ही रहता है लेकिन उसकी जगह उसकी अविवाहित बहन दूल्‍हे के रूप में सारी रस्‍में अदा करती है।

अगर बहन नहीं है तो दूल्‍हे के परिवार की कोई और कुंवारी कन्‍या दूल्‍हे की ओर से जाती है। ऐसी स्थिति में दूल्‍हा घर पर अपनी मां के साथ रहता है लेकिन उसकी बहन दुल्‍हन के दरवाजे पहुंचती है, उससे शादी करती है और उसे लेकर घर वापस आती है। हालांकि, दूल्‍हा शेरवानी पहनता है, साफा भी धारण करता है, तलवार भी बांधता है लेकिन अपनी ही शादी में शामिल नहीं हो पाता।

गुजरात के सुरखेड़ा गांव के कांजीभाई राठवा कहते हैं, ‘आम तौर पर सारी पारंपरिक रस्‍में जो दूल्‍हा निभाता है वह उसकी बहन करती है। यहां तक कि ‘मंगल फेरे’ भी बहन ही लेती है।’ राठवा आगे बताते हैं, ‘लेकिन इस परंपरा का पालन यहां के केवल तीन गांवों में ही होता है। ऐसा माना जाता है कि अगर हम इसका पालन न करें तो कुछ न कुछ अशुभ जरूर घटित होता है।’

सुरखेड़ा गांव के मुखिया रामसिंहभाई राठवा कहते हैं, ‘जब भी लोगों ने इस परंपरा को अस्‍वीकार कर इसकी अनदेखी की है उनका नुकसान हुआ है। कई बार लोगों ने कोशिश की कि इस परंपरा को न मानें तो ऐसे में देखा गया कि या तो शादी टूट जाती है या वैवाहिक जीवन सुखद नहीं रहता, या फिर कोई और समस्‍या उठ खड़ी होती है।’

पंडितों का कहना है कि यह अनोखी परंपरा आदिवासी संस्‍कृति की पहचान है। यह एक लोककथा का हिस्‍सा है जिसका पालन अनंतकाल से चला आ रहा है। इस कथा के मुताबिक, तीन गांवों- सुरखेड़ा, सानदा और अंबल के ग्राम देवता कुंवारे हैं। इसलिए उन्‍हें सम्‍मान देने के लिए दूल्‍हे घर पर ही रहते हैं। ऐसी मान्‍यता है कि ऐसा करने से दूल्‍हे सुरक्षित रहते हैं।

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