स्वास्थ्य मंत्रालय ने मंगलवार को कहा कि वर्तमान में प्लाज्मा थेरपी अपने प्रायोगिक स्तर पर है और अभी तक इस बात का कोई प्रमाण नहीं है कि इसका इस्तेमाल COVID-19 यानी कोरोना के उपचार के रूप में किया जा सकता है। स्वास्थ्य मंत्रालय के संयुक्त सचिव लव अग्रवाल ने कहा कि वर्तमान में कोविड -19 के लिए कोई उपचार नहीं हैं और यह दावा करने के लिए हमारे पास पर्याप्त सबूत नहीं हैं कि प्लाज्मा थेरपी का उपयोग बीमारी के इलाज के लिए किया जा सकता है।
उन्होंने कहा कि ‘ICMR (इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च) ने COVID 19 के उपचार में प्लाज्मा थेरपी कितनी प्रभावी है, इसका अध्ययन करने के लिए एक राष्ट्रीय स्तर पर प्रयोग शुरू किया है। जब तक आईसीएमआर अपनी जांच पूरी करके किसी ठोस नतीजे के साथ नहीं आता, तब तक प्लाज्मा थेरपी का उपयोग केवल अनुसंधान या परीक्षण के उद्देश्य के लिए किया जाना चाहिए।
जनपक्ष ने इस मुद्दे को ट्विटर के माध्यम से जोर शोर से उठाया था क्योकि देश के कई प्रदेशों में प्लाज्मा थेरपी के इस्तेमाल की बातें सामने आने लगी थी। दरअसल, सबसे पहले दिल्ली के एक निजी अस्पताल ने दावा किया था कि उनके यहां भर्ती कोरोना का एक मरीज प्लाज्मा थेरपी से बिल्कुल ठीक हो गया जबकि उसकी हालात बेहद नाजुक हो चुकी थी। उसको वेंटिलेटर पर रखा गया था। लेकिन बाद में वह बिल्कुल ठीक हो गया और उसकी लगातार तीन रिपोर्ट भी निगेटिव आई थी।
इसके बाद यूपी के केजीएमयू में भी एक संक्रमण मुक्त डॉक्टर ने एक मरीज को प्लाज्मा डोनेट किया। महाराष्ट्र, हरियाणा में भी प्लाज्मा थेरपी से मरीज ठीक होने की बात की जा रही थी लेकिन अब सरकार ने इसे रोक दिया है।
इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च ने भी एक बयान जारी कर कहा है कि अभी तक प्लाज्मा थेरपी के बारे में कोई ठोस नतीजे में हम नहीं पहुंचे हैं। कोविड-19 से पीड़ित व्यक्ति को ये इलाज मुहैया कराया जाए अभी यह ठीक नही होगा। यूएस फूड एंड ड्रग एडमिन भी इसको इलाज के रूप में देख रहा है।
प्लाज्मा थेरेपी में कोरोना संक्रमण से मुक्त हो चुके व्यक्ति के खून से प्लाज्मा निकालकर उस व्यक्ति को चढ़ाया जाता है, जिसे कोरोना वायरस का संक्रमण है। ऐसा इसलिए किया जाता है कि जो व्यक्ति कोरोना के संक्रमण से मुक्त हो चुका है, उसके शरीर में एंटीबॉडी बन जाती है। जब इसे कोरोना से जूझ रहे मरीज को चढ़ाया जाता है, तो उसकी रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ती है।