सरकार बड़ी बड़ी नीतिया आम जन को केंद्र मे रखकर बनाती हैं लेकिन अधिकारीगण उन नीतियो को पलीता लगाकर कैसे बिल्डरों को फायदा पहुचाते हैं यह उसका एक ज्वलंत उदाहरण है।
वर्ष 2007 मे उत्तर प्रदेश सरकार ने हाई टेक टाउनशिप नीति लागू करी जिसमे विकासकर्ता को 1500 एकड़ व उससे अधिक के क्षेत्र मे अत्याधुनिक व ग्रीन सिटी के रूप मे विकसित करने को आवेदन मंगाए गए व गाजियाबाद क्षेत्र मे वेव सिटी व सन सिटी को उसमे चयनित किया गया व उनसे यह अपेकषा की गयी की विकासकर्ता 5 साल मे यह सिटी विकसित करके प्राधिकरणों को सौप देंगे या वो लोग उसे बढ़ाने के लिए आवेदन करेंगे व 3000 एकड़ से अधिक का क्षेत्र होने पर विकासकर्ता अधिकतम 6 चरणों मे काम करेंगे व जिसकी पत्रांक संख्या 3872/आठ -1-07-34 विविध/03 दिनाक 17 सितंबर 2007 हैं। Please click here to download Uttar Pradesh Hi-Tech Township 2007 Copy.
इस पत्र मे कई बाते लिखी हैं जैसे की विकासकर्ता को एक एमओयू 30 दिनो के अंदर बनाना हैं व यदि ऐसा कोई तथ्य प्रकाश मे आता हैं की विकासकर्ता द्वारा नीति का दुरुपयोग किया गया हैं या तथ्यो को छिपाया गया है तो उच्च स्तरीय समिति उनका चयन निरस्त भी कर सकती हैं।
नियम 22 के अनुसार हाई-टेक टाउनशिप मे विकासकर्ता द्वारा एमओयू मे भूमि-प्रयोग का निर्धारन मानको के अनुरूप किया जाएगा जिसमे आवासीय, व्यावसायिक, ओध्योगिक, सार्वजनिक, अर्द्ध सार्वजनिक सुविधाए, यातायात एव परिवहन, पार्क एव खुले क्षेत्र/ ग्रीन कवर, तथा मनोरंजन इत्यादि का भू-उपयोग के लिए भूमि आरक्षित करने के साथ साथ अंतर्राष्ट्रीय मानको के अनुरूप सुविधाए, सड़क, ड्रेनेज, जलापूर्ति, विधुत आपूर्ति, सॉलिड वेस्ट मेनेजमेंट, आधुनिक संचार, यातायात व परिवहन प्रणाली के संबंध मे आवश्यक प्रावधान किए जाएँगे पर इनमे से किसी का भी सूचरू रूप से पालन नहीं हो रहा हैं।
नियम 28 मे स्पष्ट किया गया हैं की यदि विकासकर्ता 5 समय पर कार्य नहीं करता हैं तो उसका उसकी अवधि को बढ़ाया जा सकता हैं पर कितना बढ़ाया जा सकता हैं यह यहा पर नहीं बताया गया हैं जो की बाबुओ की जेब गरम करने का आसान सा जरिया हैं जिसके कारण आज तक वेव सिटी को परियोजना मे लगातार विस्तार मिलता गया हैं व आज नीति को जारी किए हुए 16 साल हो गए हैं पर मजाल हैं कोई बाबू आकार उसके खिलाफ कोई कार्य कर ले।
नियम 30 मे साफ साफ लिखा हैं की विकासकर्ता द्वारा टाउनशिप के आंतरिक व बाहरी कार्य डीपीआर मे निर्धारित मानको के अनुसार स्वय अपनी लागत पर किए जाएँगे व यदि उसे शासकीय अभिकरण से कोई भी सुविधा चाहिए तो उसके लागत से 15 प्रतिशत सुपरविजन जोड़कर उपलब्ध कराई जा सकती है पर यहा पर वेव सिटी द्वारा कारयान, एसकेए व गौड़ संस जैसे कई बिल्डर को जमीन बेच दी गई हैं व आश्चर्य की बात हैं की जीडीए ने उन सभी बिल्डरों को लेआउट व अनुमति दोनों प्रदान कर दी हैं व रेरा द्वारा उसको पंजीकृत भी किया जा चुका हैं। इतना बड़ा खेल बिना किसी नेता व अधिकारी के संरक्षण के बिना हो ही नहीं सकता।
नियम संख्या 33 के अनुसार बिल्डर सामुदायिक सुविधाय, विधुत सब स्टेशन, पुलिस स्टेशन, फायर स्टेशन, पोस्ट ऑफिस, टेलीफ़ोन एक्स्चेंज आदि के लिये ना केवल जमीन देगा अपितु उन्हे मानक के अनुसार निशुल्क बनाकर भी देगा पर नियम के अनुसार उसने केवल पुलिस स्टेशन बनाया हैं जो की उसके ही इशारे पर काम करता नज़र आता हैं व हमने देखा हैं की पुलिस कर्मचारी उनके वाहन का भी प्रयोग करते हैं जिसके बारे मे पुलिस के उच्चाधिकारियों को भी ज्ञात हैं।
इसके अलावा हमारे प्रयासो के इंडिया पोस्ट ने अपना कार्यालय खोलने की कोशिस की थी लेकिन वेव मैनेजमेंट के अड़ंगे के कारण वो आजतक नहीं खुल पाया हैं। पूर्व माह मे वेव मैनेजमेंट द्वारा संचार कंपनियो को जगह ना देने के कारण दूरसंचार विभाग के उच्चाधिकारियों द्वारा क्षेत्र का दौरा किया गया था उनको कंपनियो द्वार बताया गया हैं की वेव मैनेजमेंट उन्हे टावर लगाने के लिए जगह नहीं दे रहा हैं। जिसकी शिकायत हमने मुख्यमंत्री व प्रधामन्त्री के पोर्टल पर भी की हैं जिसका निस्तारण एक साल बीत जाने के बाद आज तक नहीं हुआ हैं।
नियम संख्या 35 मे इस बात का उल्लेख किया गया हैं की यदि विकासकर्ता विधुत वितरण स्वय करना चाहे तो कर सकता हैं पर उसके लिए उसे उत्तर प्रदेश विधुत नियामक आयोग से विधुत वितरण के लिए पृथक लाइसेन्स लेना होगा पर वेव सिटी मेनेजमेंट ने ऐसा ना करके पीवीवीएनएल के अधिकारियों के साँठ गांठ करके सिंगल पॉइंट कनैक्शन ले लिया व उससे पूरे 4500 एकड़ की सिटी मे विधुत वितरण किया जा रहा हैं व मजेदार बात तो यह है की पीवीवीएनएल के सभी अधिकारी इसको जायज ठहराने के लिए तर्कहीन बाते करके इसे नियमित करने का प्रयास कर रहे हैं।
देश मे किसी भी बिजली वितरण क्षेत्र मे आप चले जाइए वो आपको कनैक्शन देने के नाम पर नाको चने चबवा देंगे। यही नहीं पीवीवीएनएल के ऐसे कई उद्धारण हैं जिसमे 50 गज की भूमि पर बिजली का कनैक्शन देने के लिए उपभोक्ता को कई महीने लगा दिये की आपके कागज पूरे नहीं हैं व रजिस्ट्री मे ये कमी हैं पर 4500 एकड़ की वेव सिटी को बिना नीति व अनुबंध पढे एक माह मे कनैक्शन जारी कर दिया गया जो दर्शाता हैं की किस प्रकार अधिकारी सरकारी तंत्र का दुरुपयोग कर रहे हैं।
इतना ही नहीं वर्ष 2015 मे इसी वेव सिटी द्वारा नियामक आयोग मे दाखिल जवाब मे यह कहा हैं की उसके क्षेत्र मे पीवीवीएनएल द्वारा बिजली दी जा रही हैं। यदि उस समय पीवीवीएनएल इस क्षेत्र मे बिजली दे रहा था तो उसने वेव सिटी को क्यो एकल कनैक्शन दिया व उनके उस समय के उपकरण कहा गए क्या विभाग ने बिल्डर को फायदा पाहुचाने के लिए अपने उपकरण हटा लिए या बिल्डर ने विभाग की साँठ गांठ से उन्हे स्वय ही हटा दिया।
अब जन जनपक्ष द्वारा पीवीवीएनएल, यूपीपीसीएल, विधुत नियामक आयोग, आवास विकास व मुख्यमंत्री कार्यालय द्वारा वेव सिटी को कैसे बिना लाइसेंस के बिजली का कनैक्शन मिल गया तो सबको सांप सूंघ गया हैं व अब पीवीवीएनएलओ लीपा पोती के नाम पर बिल्डर के साथ मिलकर रिपोर्ट तैयार की जा रही हैं की 51 प्रतिशत लोग हमसे बिजली नहीं चाहते हैं। यह विश्व का पहला विभाग होगा जो अपनी विश्वनीयता को खो देने का प्रमाणपत्र स्वय बनायाएगा।
नीति संख्या 37 मे प्रावधान हैं की हाई टेक टाउनशिप के लिए आवश्यक होने पर विधुत उत्पादन की प्रथक व्यवस्था हेतु राज्य सरकार की प्रचलित ऊर्जा नीति, सपठित विधुत अधिनियम 2003 एव विधुत नियम आयोग द्वारा जारी नियमावली के आधीन अनुमति देय होगी पर वेव प्रबंधन लोगो को प्रधानमंत्री सूर्य घर योजना व अन्य सरकारी योजना का लाभ लेने से वंचित कर रहा हैं क्योकि इसके लिए नेट मीटररिंग की व्यवस्था हैं जो की केवल DISCOM ही दे सकता हैं।
सिर्फ इतना ही नहीं हैं वेव प्रबंधन ने जमकर नियमो की धज्जिया उड़ाई हैं व इसके लिए उसने विभागो के पूर्व कर्मचारियो को नौकरी पर रखा हुआ हैं ताकि वो अपने अपने पूर्व विभागो मे उनके लिए लोबिंग करे ताकि उनपर कोई भी आंच ना सके व यही कारण हैं की विभागो मे वेव की इतनी गहरी पैठ हैं जिसके कारण लोगो की शिकायते दबकर रह जाती हैं व विकासकर्ता शिकतकर्ता पर दबाव डालकर शिकायत बंद करवा देता हैं व यही शिकायतकर्ता नहीं मानता हैं तो विभाग के कर्मचारी ही झूठ लिखकर शिकायत को बंद कर देते हैं।
हमारे द्वारा लोगो की शिकायतों को क्षेत्र के सभी अधिकारियों को पाहुचाया जा चुका हैं व वेव सिटी की कार्यप्रणालियों से सभी अधिकारी अवगत हैं क्योकि जीडीए अधिकारियों से पूछो तो बोलते हैं की आयुक्त मेरठ से दबाव हैं, मेरठ आयुक्त के अनुसार हमपर ऊपर से दबाव हैं व आवास विकास के अधिकारियों के अनुसार उन्हे स्पष्ट निर्देश हैं की इनकी डीपीआर को नहीं रोका जाये। नहीं तो क्या कारण हैं की हाई टेक नीतियो को 16 साल गुजर जाने के बाद भी आजतक बिल्डर को नीतियो के अंतर्गत इन्हे निरस्त नहीं कर पाया हैं ओर बाकायदा इन्हे विस्तार पर विस्तार दिया जा रहा हैं।
इसका सीधा सीधा मतलब हैं की अधिकारी मंत्रियो के दबाव मे हैं ओर मंत्रीपरिषद व उत्तर प्रदेश सरकार बिल्डरों के हाथ की कठपुतली बनी हुई हैं।
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