Uttarakhand Aapda Prabandhan

निकम्मों के सुपुर्द उत्तराखंड का आपदा प्रबंधन

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आज केदारनाथ आपदा के पाँच साल पूरे हो जाने पर उन सभी लोगो को नमन जिन लोगो ने अपने प्राण गवाये थे और उन सभी को भी नमन जिन लोगो ने दिन रात एक करके वह फसे लोगो को बचाया था।

आज प्रश्न यह हैं की क्या हम अब 5 साल पहले जैसी आयी आपदा से निपटने को तैयार हैं? अगर वास्तविकता की बात की जाए तो कागजो में हम पहले से तो अधिक सक्षम हैं लेकिन असल में स्थिति कुछ और ही हैं| आइये हम आपको बताते हैं की आखिर आपदा प्रबंधन के नाम पर हो क्या रहा हैं उत्तराखंड में

हमारे राज्य में आज भी निकम्मे लोगो की फौज हैं जिनको पैसा तो चाहिए लेकिन कम कुछ नही करना चाहते और अगर आप उनका बॉयोडाटा देखेंगे तो उसमे तो बहुत कुछ मिलेगा लेकिन नाम बड़ा और दर्शन छोटे। हमारे उत्तराखण्ड की ये व्यथा रही है कि हमारे यह निकम्मे और भ्रष्ट लोगो को सर पर बिठाया जाता है और अच्छे काम करने वाले कर्मचारियों को हाशिये पर डाल दिया जाता हैं।

गिरीश चंद्र जोशी भी उन निकम्मे व्यक्तियों में से एक हैं जो खुद को फेसबुक प्रोफाइल में डिजास्टर मैनेजमेंट स्पेशलिस्ट (उत्तराखण्ड सरकार) लिखते है लेकिन उनके निकम्मेपन की हद यह हैं की उनको आपदा के विषय में कुछ पता भी नहीं हैं हाल तो तो ये हैं कि एक कार्यशाला में जिसमे खुद प्रदेश के मुख्य मुख्यमंत्री अपना संबोधन दे रहे थे और यह महाशय गहरी नींद सो रहे थे उनके इस निकम्मेपन को प्रदेश के एक मुख्य समाचार पत्र द्वारा उनकी सोते हुई फ़ोटो के साथ प्रकाशित भी किया गया| लेकिन मुख्यमंत्री द्वारा उनपर कोई कार्यवाही नही की गई।

उत्तराखंड राज्य में न अच्छे अधिकारियों की कमी हैं ना जज़्बे की लेकिन जब तक अच्छे लोगो को अपनी प्रतिभा दिखाने और कुछ करने का मौका नही मिलेगा तो वो खुद को साबित करेंगे कैसे? गिरीश चंद्र जोशी जैसे लोगो की वजह से आपदा प्रबंधन विभाग मृत्युशैया पर पड़ा हैं और अगर जहाँ आपदा प्रबंधन विशेषज्ञ हर जगह सोते पाए जाए वह आपदा का प्रबंधन का स्तर कैसे होगा यह आप लोग भी समझ सकते हैं।

गिरीश जोशी जैसे सुस्त और निकम्मे अधिकारी जिन्हें अपने दाइत्व का बोध ही नहीं है और ना ही आपदा से निपटने की कोई सोच हैं| उन्हें तो बस अपने आराम और नींद से मतलब हैं फिर वो नींद की जगह मुख्यमंत्री की कार्यशाला हो, आपदा प्रबंधन का कार्यालय हो या वर्ल्ड बैंक पोषित परियोजना का कार्यालय इन्हें कोई फर्क नहीं पड़ता क्योकि सूबे के मुखिया का हाथ जो इनके सिर पर हैं|