अख़बार की सुर्खियां

अख़बार की सुर्खियां

अख़बार की सुर्खियां
अख़बार की सुर्खियां

हर सुबह की तरह रंजना जी आज भी बड़बड़ा रही थीं, “न जाने दुनिया में क्या-क्या होता जा रहा है। अख़बार हाथ में लेते ही मन ख़राब हो जाता है। पहले अख़बार पढ़कर सुकून मिलता था। समय के साथ-साथ सुर्खियां भी बेगानी पीड़ादायक हो गई है।”

जब हम भी छोटे हुआ करते थे तो अख़बार का हर पन्ना पलटना होता था। पिताजी से न जाने कितने सवाल करती थी। बहुत सुकून मिलता था। हर सुर्खी का चटकारा लेकर। बेशक राजनीति की बातें होती थीं। लेकिन इतनी हैवानियत नहीं दिखती थीं सुर्खियों में। अच्छे टिप्स को तो मैं ज़हन में उतार लेती थी। और हाँ, कवियों की जीवनी और उनका अंदाजे-बयाँ बहुत भाता था। उन्हें पढ़कर कुछ-कुछ लिखा करती थी डायरी में। मेरे पिताजी बहुत खुश हुआ करते थे।

मैं अच्छा लिखती हूँ का प्रोत्साहन देते थे। उनका अख़बार के प्रति रुझान मुझे बहुत भाता था। हमेशा कहा करते थे कि दिन की शुरुआत अखबार से होनी चाहिए। लेकिन उनका तातपर्य था कि ज्ञान अर्जित करो। हाँ, उस जमाने में मोबाइल फोन और केबल या डिश टीवी नहीं हुआ करते थे। टीवी अगर होता भी थी तो केवल दूरदर्शन से ही समाचार देखने को मिलता था । जिसे हम लोग बार-बार देखते रहते थे और फिर अगली सुबह के अखबार का इतंजार। क्योंकि, मन में शांति मिलती थी सुर्ख़ियों से। सांसारिक बातों का ज्ञान होता था। संस्कार और संस्कृति झलकती थी।

पहले ज्ञान-धर्म की बातें मन को सुकून देती थी। आज समय बदल गया है। जिस भी पन्ने को पलटकर देखों तो वहीं कुछ न कुछ बुरी ख़बर मन विचलित कर देता है … मासूम बच्चों के साथ आए दिन दुर्व्यवहार की घटनाएं दिल दहलाने वाली होती हैं। यही सब घटनाओं से हमारे देश की कानून-व्यवस्था पर सवाल उठते हैं। ये कैसा न्याय है, जहाँ पर दरिंदों को यूं ही छोड़ दिया जाता है। क्योंकि कुछ दरिंदे बड़े ऊँचे पद-पैसे वालों के रिश्तेदार होते हैं तथा कुकर्म करके छूट जाते हैं। यही सब घटनाएं पढ़कर विकृत विचार वालों को भी ऐसा करने की प्रेरणा मिलती है।

अब तो आए दिन दुर्घटनाएं भी पढ़कर लगता है कि क्यों सरकार ठोस कदम नहीं उठाती है? ओवर-लोडेड गाड़ियां अक़सर काल का ग्रास बनते जा रही हैं। सरकारी दफ़्तर हो या प्राइवेट सब जगह धान्दली है। बसों की सर्विस नहीं होती है, परिचालक ज़रूरत से ज्यादा लोगों को बैठाते हैं, गाड़ियों के स्पीड पर नियन्त्रण नहीं होता है इत्यादि। बेरोज़गारी, आत्महत्या, बलात्कार, चोरी, काला-बाज़ारी, रिश्वतख़ोरी जैसी अनेक खबरों से परेशानी और बेचैनी होती है। सुबह के अख़बार से क़ाश हमारे देश में कानून-व्यवस्था अगर दुरुस्त हो जाए, रोज़गार बढ़ जाए, देश तरक्की करे

तो अख़बार का हर पन्ना हमारे आने वाली पीढ़ी पर सकारात्मक प्रभाव डालेगा। अख़बार का पन्ना खून से नहीं बल्कि रंगीन रंगोली से सजेगा। इसलिए हम सबको ही अपने बच्चों को बचपन से शिक्षित करके एक अच्छा इंसान बनने की प्रेरणा देना अनिवार्य है। अभी अखबार में पढ़ने को मिल रहा है कि कुछ कठोर निर्णय लिए जा रहे हैं, जिससे परिवहन व्यवस्था हो या चोर-बाजरी सभी में राहत मिलेगी। स्वच्छता का सबसे बड़ा संदेश हमें इतने सालों बाद मिला है ‘पहले शौचालय फिर देवालय’ यही हमारे देश की पहचान होगी।

और हां, पॉलीथिन मुक्त जब देश होगा तभी प्राकृतिक आपदा से छुटकारा भी मिलेगा। आज अख़बार की कुछ सुर्खियां मन में देश प्रेम की भावना को लाने का प्रयास कर रही है। तरक्क़ी और ख़ुशहाली के लिये हमें भी बदलना होगा जिससे अखबार का हर पन्ना कुछ कहेगा तथा कुछ छाप मन में छोड़ेगा। हमारे देश के बच्चों को आगे बढ़ने में सहायक होगा। आप बदलेंगे हम बदलेंगे तो अखबार की सुर्खियां भी बदलेंगी। देश उन्नति करेगा बच्चों का भविष्य उज्ज्वल होगा तभी देश की सामाजिक व्यवस्था का सुधार होगा….

कविता बिष्ट

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